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१०-१. [प्र.] भगवन् ! क्या देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिशक देव हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[उ. ] हाँ, गौतम ! हैं ।
10-1 [Q.] Bhante ! Does Shakra, the king of gods, has Trayastrimshak gods (ministers or priests) ?
[Ans.] Yes, he has.
१०- २. [ प्र. ] से केणट्ठेणं जाव तायत्तीसगा देवा, तायत्तीसगा देवा ? [उ. ] एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वालाए नामं सन्निवेसे होत्था । वण्णओ । तत्थ णं वालाए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया जहा चमरस्स जाव विहरति । तए णं ते तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया पुव्विं पि पच्छा वि उग्गा उग्गविहारी संविग्गा बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणंति पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेंति, झूसित्ता सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदित्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा जाव उववन्ना । जप्पभिइं च णं भंते! ते वालागा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया सेसं जहा चमरस्स जाव अन्ने उववज्जति ।
१०- २. [प्र.] भगवन्! ऐसा किस कारण कहते हैं कि देवेन्द्र देवराज शक्र के त्रायस्त्रिशक देव हैं ?
संविग्गविहारी
[.] गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में बालाक (अथवा पलाशक) सन्निवेश था। उस बालाक सन्निवेश में परस्पर सहायक तैंतीस गृहपति श्रमणोपासकं रहते थे, इत्यादि सब वर्णन चरमेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों के अनुसार कहना चाहिए। वे तैंतीस परस्पर सहायक गृहस्थ श्रमणोपासक पहले भी और पीछे भी उग्र, उग्रविहारी एवं संविग्न तथा संविग्नविहारी होकर बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर, मासिक संलेखना से शरीर को कृश करके, साठ भक्त का अनशन द्वारा छेदन करके, अन्त में आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल के अवसर पर समाधिपूर्वक काल करके यावत् शक्र के त्रायस्त्रिशक देव के रूप में उत्पन्न हुए । 'भगवन् ! जब से वे बालाक निवासी परस्पर सहायक गृहपति श्रमणोपासक शक्र के त्रायस्त्रिशकों के रूप में उत्पन्न हुए, क्या तभी से शक्रं के त्रायस्त्रिशक देव हैं ? इत्यादि प्रश्न एवं उसके उत्तर में शेष समग्र वर्णन, द्रव्यार्दिक नय से शाश्वत है और पर्यायाथिक नय की दृष्टि से पुराने च्यवते हैं और नये उत्पन्न होते हैं; यहाँ तक चरमेन्द्र के समान कहना चाहिए ।
10-2. [Q.] Bhante ! Why is it said that Shakra, the king of gods has Trayastrimshak gods?
दशम शतक : चतुर्थ उद्देशक
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Tenth Shatak: Fourth Lesson
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