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७–१. [ प्र.] अत्थि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगा
देवा तायत्तीसगा देवा ?
[ उ. ] हंता, अस्थि ।
७-१. [प्र.] भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के त्रायस्त्रिशक देव हैं ?
[उ.] हाँ, गौतम हैं।
7-1. [Q.] Bhante! Does Chamar, the king of gods of Asur-kumar gods, has Trayastrimshak gods (ministers or priests ) ? [Ans.] Yes, he has.
७- २. [ प्र. ] से केणद्वेणं भंते !
[ उ. ] एवं वुच्चइ-एवं तं चेव सव्वं भाणियव्वं, जाव तायत्तीसगदेवत्ताए उववण्णा । ७-२. [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि चमर के त्रायस्त्रिशक देव हैं ? [उ.] उत्तर में पूर्व- कथित त्रायस्त्रिशक देवों का समस्त वृत्तान्त कहना चाहिए यावत् वे
ही (काकन्दी निवासी परस्पर सहायक तैंतीस गृहस्थ श्रमणोपासक मरकर ) चमरेन्द्र के त्रायत्रिंश देव के रूप में उत्पन्न हुए ।
7-2. [Q.] Bhante ! Why is it said that Chamar, the king of gods of Asur-kumar gods has Trayastrimshak gods?
[Ans.] In answer repeat the whole statement already given about Trayastrimshak gods (5.2) up to "They have taken rebirth as the Trayastrimshak- gods of Chamarendra.'
७-३. [ प्र. ] भंते ! तप्पभिङ्गं च णं एवं वुच्चड़-चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगा देवा, तायत्तीसगा देवा ?'
[उ. ] नो इणट्ठे समट्ठे, गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेज्जे पण्णत्ते; जं न कदाइ नासी, न कदाइ न भवइ, जाव निच्चे अव्वोच्छित्तिनयट्ठताए, अन्ने चयंति, अन्ने उववज्जंति।
७-३. [प्र.] भगवन्! जब से वे ( तैंतीस गृहस्थ श्रमणोपासक असुरराज असुरेन्द्र चमर के) त्रायस्त्रिशक देव रूप में उत्पन्न हुए हैं, क्या तभी से ऐसा कहा जाता है कि असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? ( क्या इससे पूर्व उसके त्रायस्त्रिंशक देव नहीं थे?) [उ.] गौतम ! यह अर्थ उचित नहीं है । असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिशक देवों के नाम शाश्वत हैं इसलिए किसी समय नहीं थे, या नहीं हैं, ऐसा नहीं है और कभी नहीं रहेंगे, ऐसा भी नहीं है । यावत् अव्युच्छित्ति (द्रव्यार्थिक) नय की अपेक्षा से वे नित्य हैं,
दशम शतक : चतुर्थ उद्देशक
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Tenth Shatak: Fourth Lesson
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