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8555555555555555555555555555555555 के समणोवासया पुट्विं उग्गा उग्गविहारी, संविग्गा, संविग्गविहारी भवित्ता, तओ पच्छा
पासत्था, पासत्थविहारी, ओसण्णा, ओसण्णविहारी, कुसीला, कुसीलविहारी, अहाच्छंदा, ॐ अहाछंदविहारी, बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणंति पाउणित्ता अद्धमासियाए म संलेहणाए अत्ताणं झूसेंति, अत्ताणं झूसित्ता तीसं भत्ताइं अणसणाए छेदेति, छेदित्ता, ॐ तस्स ठाणस्स अणालोइय अपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स है असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना।
५-२. [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि असुरकुमारों के राजा असुरेन्द्र ॐ चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं?
[उ.] हे श्यामहस्ती! (असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव होने का) कारण इस प्रकार फ़ है-उस काल उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में काकन्दी नाम की नगरी थी
(वर्णन)। उस काकन्दी नगरी में (एक दूसरे की परस्पर) सहायता करने वाले तैंतीस गृहपति ॐ श्रमणोपासक (श्रावक) रहते थे। वे धनाढ्य यावत् अपरिभूत थे। वे जीव-अजीव के ज्ञाता एवं
पुण्य-पाप को हृदयंगम किये हुए विचरण (जीवन-यापन) करते थे। एक समय था, जब वे + परस्पर सहायक तैंतीस गृहपति श्रमणोपासक पहले उग्र (उत्कृष्ट-आचारी), उग्र-विहारी, संविग्न
(संसार से भयभीत), संविग्नविहारी थे, परन्तु तत्पश्चात् वे पार्श्वस्थ (धर्म से दूर मोहग्रस्त) म पार्श्वस्थविहारी, अवसन्न (धर्माचरण में प्रमादी) अवसन्नविहारी, कुशील (ज्ञानादि के विराधक)
कुशीलविहारी, यथाच्छन्द (सूत्र विरुद्ध इच्छानुसार चलने वाले) और यथाच्छन्दविहारी हो गए। 卐 बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक-पर्याय का पालन कर, अर्धमासिक, संलेखना द्वारा शरीर को कृश
करके तथा तीस भक्तों का अनशन द्वारा छेदन करके, उस (प्रमाद) स्थान की आलोचना और म प्रतिक्रमण किये बिना ही काल के अवसर पर काल कर वे असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए हैं।
5-2. [Q.] Bhante ! Why is it said that Chamar, the king of gods of 4 Asạr-kumar gods has Trayastrimshak gods?
[Ans.] O Shyamahasti ! The reason for this is as follows—During 4 that period of time in the Bharat area of this Jambu continent 4 a city called Kakandi. Description. In Kakandi city lived thirty three $ Shramanist (followers of the Shraman religion or Jains) house holders
who were mutually helpful. They were affluent... and so on up to... fearless. They knew about the living and the non-living and lead their life with full awareness of merit and demerit. There was a time when these thirty three Shramanist householders were perfect (ugra) and rebirth-fearing (samvigna) in thought and conduct, but later they turned stragglers (parshvasth), negligent (avasanna), transgressors (kusheel)
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दशम शतक: चतुर्थ उद्देशक
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Tenth Shatak : Fourth Lesson
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