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१८. [प्र.] भगवन्! आनत और प्राणत देवलोकों में कितने सौ विमानावास कहे गए हैं? [उ.] गौतम! (आनत-प्राणत देवलोकों में) चार सौ विमानावास कहे गए हैं।
18. [Q.] Bhante ! How many hundred vimaans (celestial vehicles) are said to be there in Aanat and Praanat divine realms?
[Ans.] Gautam ! There are said to be four hundred vimaans (celestial vehicles).
१९. [प्र.] ते णं भंते ! किं संखेज्ज. पुच्छा।
[उ.] गोयमा ! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्ज वित्थडा वि। एवं संखेज्जवित्थडेसु तिण्णि गमगा जहा सहस्सारे। असंखेज्जवित्थडेसु उववज्जतेसु य चयंतेसु य एवं चेव के संखेज्जा भाणियव्वा। पन्नत्तेसु असंखेज्जा, नवरं नोइंदियोवउत्ता, अणंतरोववन्नगा, अणंतरोगाढगा, अणंतराहारगा, अणंतरपज्जत्तगा य, एएसिं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा पन्नत्ता। सेसा असंखेज्जा भाणियव्वा। . १९. [प्र.] भगवन् ! वे (विमानावास) क्या संख्यात योजन विस्तार वाले हैं अथवा असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं?
[उ.] गौतम! वे संख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं और असंख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं। संख्यात योजन विस्तार वाले विमानावासों के विषय में सहस्रार देवलोक के समान तीन
आलापक कहने चाहिए। असंख्यात योजन विस्तार वाले विमानों में उत्पत्ति और च्यवन के विषय म में 'संख्यात' कहना चाहिए एवं 'सत्ता' में असंख्यात कहना चाहिए। केवल विशेषता इतनी है कि
नो-इन्द्रिय (मन) के उपयोग वाले अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ, अनन्तराहारक और अनन्तरपर्याप्तक, ये पाँच जघन्य से एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात कहे गए हैं। शेष (अन्य सभी) असंख्यात कहने चाहिए।
19. [Q.] Bhante ! Is the expanse of these vimaans (celestial vehicles) countable Yojans (limited) or innumerable Yojans (unlimited)? ____ [Ans.] Gautam ! The expanse of these vimaans (celestial vehicles) is countable Yojans (limited) as also innumerable Yojans (unlimited). With : regard to vimaans with countable Yojans area three statements should be repeated like Sahasraar divine realm. With regard to vimaans with $ uncountable Yojans area countable should be mentioned about origin and descent and uncountable about existence. The difference is that jivas with
भगवती सूत्र(४)
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Bhagavati Sutra (4)|