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बीओ उद्देसओ : संवुडअणगारे
द्वितीय उद्देशक : संवृत अनगार DVITIYA UDDESHAK (SECOND LESSON): SAMVRIT ANAGARA (THE RESTRAINED ASCETIC)
संवृत अनगार को लगने वाली क्रिया ACTIVITIES PERFORMED BY RESTRAINED ASCETIC
१. रायगिहे जाव एवं वयासी। १. राजगृह में (भगवान महावीर से) यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा
1. In the city of Rajagriha... and so on up to... Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir as follows
२. [प्र.] संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स वीयी पंथे ठिच्चा पुरओ रूवाइं निज्झायमाणस्स, मग्गओ रूवाइं अवयक्खमाणस्स, पासओ रूवाइं अवलोएमाणस्स, उड्ढं रूवाइं आलोएमाणस्स, अहे रूवाई आलोएमाणस्स तस्स णं भंते! किं इरियावहिया : किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ?
[उ.] गोयमा ! संवुडस्स णं अणगारस्स वीयी पंथे ठिच्चा जाव तस्स णं नो के है इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ।
२. [प्र.] भगवन्! वीचिपथ (कषाय भाव अथवा कषायोदय) में स्थित होकर सामने के के रूपों को देखते हुए, पीछे रहे हुए रूपों को देखते हुए, पार्श्ववर्ती (दोनों ओर के) रूपों को +देखते हुए, ऊपर के (ऊर्ध्व स्थित) रूपों का अवलोकन करते हुए एवं नीचे के (अधः स्थित) ॐ रूपों का निरीक्षण करते हुए संवृत अनगार को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा ॥ साम्परायिकी क्रिया लगती है?
[उ.] गौतम! वीचिपथ (कषाय भाव) में स्थित होकर सामने के रूपों को देखते हुए यावत् नीचे के रूपों को देखते हुए संवृत अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती, किन्तु है साम्परायिकी क्रिया लगती है।
2. (Q.) Bhante ! While observing forms in front, those on the back, those on flanks (both), those above and those below, is a Samvrit Anagaar (an ascetic who has blocked the inflow of karmas) settled on the association (vichipath; state of fruition of passions) liable of involvement in Iryapathiki kriya (careful activity of an accomplished ascetic) or Samparayik kriya (passion inspired activity) ?
| भगवती सूत्र (४)
(12)
Bhagavati Sutra (4)| &5555555555555555555555555555555555555