SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३. एवं जाव अच्चुए कप्पे। [२३] इसी प्रकार यावत् अच्युत कल्प तक (पूर्वोक्त स्वरूप के विषय में जानना चाहिए।) 23. The same is true for other divine realms... and so on up to... Achyut Kalp. २४. [प्र.] आया भंते ! गेवेज्जविमाणे, अन्ने गेविज्जविमाणे? __[उ.] एवं जहा रयणप्पभा तहेव। २४. [प्र.] भगवन्! ग्रैवेयक विमान आत्मरूप (सद्प ) है? अथवा वह उससे भिन्न म (नो-आत्मरूप) है? [उ.] गौतम! इसका कथन रत्नप्रभा पृथ्वी के समान करना चाहिए। 24. [Q.] Bhante ! Is Graiveyak Vimaan (a divine realm) self-morphic (atma-roop or existent) or non-self-morphic (anya or non-existent)? [Ans.] Gautam ! Repeat what has been said about Ratnaprabha Prithvi. २५. एवं अणुत्तरविमाणा वि। [२५] इसी प्रकार अनुत्तर विमान तक कहना चाहिए। 25. The same is also true for Anuttar Vimaan (a divine realm). २६. एवं ईसिपब्भारा वि। [२६] इसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक कहना चाहिए। 26. The same is also true up to Ishatpragbhaara Prithvi (Siddha Lok). विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के आत्मरूप और ॐ अनात्मरूप के सम्बन्ध में चर्चा की गई है। प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में आत्मा का अर्थ सद्प और अनात्मा (अन्य) का अर्थ असद्प बताया गया है। जब किसी भी वस्तु को एक साथ सद्प और असद्प में नहीं कहा जा सकता तब वह वस्तु 'अवक्तव्य' कहलाती है। रत्नप्रभा आदि पृथ्वी : तीन रूपों में-रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक-ये ॐ स्व-स्वरूप की अपेक्षा से अर्थात्-अपने वर्णादि पर्यायों से-सद् (आत्म) रूप है। पररूप की + अर्थात्-परवस्तु की पर्यायों की अपेक्षा से-असद् (अनात्म) रूप है और उभयरूप-स्व-पर-पर्यायों की अपेक्षा से, आत्म (सद्) रूप और अनात्म (असद्) रूप, इन दोनों का एक साथ कहना अशक्य , फ़ होने से अवक्तव्य है। इस दृष्टि से यहाँ प्रत्येक पृथ्वी के सद्प, असद्प और अवक्तव्य, ये तीन 5 है भंग होते हैं। | बारहवांशतक : दशम उद्देशक (433) Twelfth Shatak : Tenth Lesson
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy