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[उ.] हाँ गौतम! इसी प्रकार पूर्व की भाँति (सभी कथन) समझने चाहिए।
21-2. [Q.] Bhante! Have all jivas (soul/living being) been born earlier , 卐 as aforesaid (preceding statement)?
[Ans.] Yes, Gautam !... and so on up to... as aforesaid.
२२-१. [प्र.] अयं णं भंते! जीवे सव्वजीवाणं रायत्ताए जुवरायत्ताए जाव सत्थवाहत्ताए उववन्नपुव्वे?
[उ. ] हंता, गोयमा! असई जाव अणंतखुत्तो।
२२-१. [प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव, सब जीवों के राजा के रूप में, युवराज के रूप में, यावत् सार्थवाह के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है?
[उ.] गौतम! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है।
22-1. [Q.] Bhante ! Has this jiva (soul/living being) been born earlier as king, as prince,... and so on up to... caravan chief of all jivas (souls/living beings) ?
[Ans.] Yes, Gautam ! It has been born earlier many times or infinite times.
२२-२. सव्वजीवा णं एवं चेव। ___ [२२-२] इस जीव के राजा आदि के रूप में सभी जीवों की उत्पत्ति का कथन भी पूर्व की भाँति कहना चाहिए।
22. [2] As aforesaid the same holds good for all jivas (soul/living being).. . २३-१. [प्र.] अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं दासत्ताए पेसत्ताए भयगत्ताए भाइल्लत्ताए भोगपुरिसत्ताए सीसत्ताए वेसत्ताए उववन्नपुव्वे?
[उ.] हंता, गोयमा! जाव अणंतखुत्तो।
२३-१. [प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव, सभी जीवों के दास के रूप में, प्रेष्य (नौकर) के के रूप में, भृतक रूप में, भागीदार के रूप में, भोगपुरुष के रूप में, शिष्य के रूप में और द्वेष्य
(द्वेषी-ईर्ष्यालु) के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है? ___[उ.] हाँ गौतम! (यह जीव) यावत् अनेक बार या अनन्त बार (पहले उत्पन्न हो चुका है।)
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| बारहवाँशतक :सप्तम उद्देशक
(373) Twelfth Shatak : Seventh Lesson | 555555555555555555
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