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[१०] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। किन्तु उनके आवासों की फ
संख्या में अन्तर है। उनकी आवास संख्या ( भगवती शं. १ उ. ५ में) पहले बताई जा चुकी है।
10. The same should be repeated for other divine abodes... and so on
up to... Stanit-kumar gods; however, their number is different. The number of their abodes has been mentioned earlier (chapter-1, lesson-5). ११-१. [ प्र. ] अयं णं भंते! जीवे असंखेज्जेसु पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि पुढविक्काइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए उववन्नपुव्वे ?
[ उ. ] हंता, गोयमा ! जाव अनंतखुत्तो ।
११- १. [प्र.] भंते! क्या यह जीव असंख्यात लाख पृथ्वीकायिक- आवासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिक- आवास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ?
[3] हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न हो चुका है।
11-1. [Q.] Bhante! Has this jiva (soul/living being) been born earlier
in each of the infinite million earth-bodied abodes in earth-bodied form... and so on up to... plant-bodied form ?
[Ans.] Yes, Gautam !... and so on up to ... ( it has been born thus) many times or infinite times.
११ - २. एवं सव्वजीवा वि ।
[११ - २] इसी प्रकार सर्वजीवों के ( विषय में भी पूर्व की भाँति कथन करना चाहिए । )
11. [2] The same is true for all jivas (souls / living beings).
१२.
[१२]
एवं जाव वणस्सइकाइएसु ।
इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों के आवासों के ( विषय में कहना चाहिए । )
12. The same is also true (for abodes of other bodied-beings )... and so
on up to... abodes of plant-bodied beings.
१३-१. [प्र.] अयं णं भंते! जीवे असंखेज्जेसु बेंदियावाससयसहस्सेस एगमेगंसि बेंदियावासंसि पुढविक्काइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए बेंदियत्ताए उववन्नपुव्वे ?
[ उ. ] हंता, गोयमा ! जाव खुत्तो ।
बारहवाँ शतक : सप्तम उद्देशक
(367)
Twelfth Shatak: Seventh Lesson
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