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________________ 855555555555555555555555555555555555 म चंदलेस्सं पच्चत्थिमेणं आवरित्ताणं पुरथिमेणं वीईवयइ तया णं पच्चत्थिमेणं चंदे उवदंसेइ, ॐ पुरत्थिमेणं राहू। एवं जहा पुरथिमेणं पच्चत्थिमेण य दो आलावगा भणिया एवं दाहिणेण उत्तरेण य दो आलावगा भाणियव्वा।। म एवं उत्तरपुत्थिमेणं दाहिणपच्चत्थिमेण य दो आलावगा भाणियव्वा, एवं म दाहिणपुरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो आलावगा भाणियव्वा। एवं चेव जाव तया णं उत्तरपच्चत्थिमेणं चंदे उवदंसेइ, दाहिणपुरस्थिमेणं राहू। जया णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं म आवरेमाणे आवरेमाणे चिट्ठइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-एवं खलु राहू चंदं गेण्हड़, एवं खलु राहू-चंदं गेण्हड्। ___जया णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स म लेस्सं आवरित्ताणं पासेणं वीईवयइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना, एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना। जया णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स 卐 लेस्सं आवरित्ताणं पच्चोसक्कइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-एवं खलु राहुणा , ॐ चंदे वंते, एवं खलु राहुणा चंदे वंते। ___जया णं राहू आगच्छमाणे वा जाव परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरित्ताणं मझमझेणं के वीईवयइ तया णं मणुस्सा वयंति-राहुणा चंदे वइचरिए, राहुणा चंदे वइचरिए। म जया णं राहू आगच्छमाणे वा जाव परियारेमाणे वा चंदलेस्सं अहे सपक्खि सपडिदिसिं आवरित्ताणं चिट्ठइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे, एवं है खलु राहुणा चंदे घत्थे। २. [प्र.] भगवन्! बहुत से मनुष्य इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि निश्चित रूप से राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है, तो हे भगवन्! क्या वास्तव में राहु चन्द्रमा को + ग्रसता है? म २. [उ.] गौतम! बहुत-से लोग जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते है में हैं (राहू चन्द्रमा को ग्रसता है), वे मिथ्या कहते हैं। मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा म करता हूँ यह निश्चय है कि राहु महर्द्धिक यावत् महासौख्य सम्पन्न है। वह उत्तम वस्त्रधारी, श्रेष्ठ ॐ माला का धारक, उत्कृष्ट सुगन्ध-धर और उत्तम आभूषणधारी देव है। | भगवती सूत्र (४) (346) Bhagavati Sutra (4)|
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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