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(उत्तर—) गौतम! अनन्त हुए हैं । ( प्रश्न - ) भगवन् ! आगे कितने होंगे ? ( उत्तर - ) गौतम! अनन्त होंगे।
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46. In the same way (as has been stated about gross physical material transformations) state about the remaining six material transformations. Where, which transformation is applicable mention infinite for past as well as future. Where the same is not applicable, both past and future are not to be stated.... and so on up to... [Q.] Bhante ! How many Aan-praan pudgal parivartya (breath material transformations) have taken place in the past of many Vaimanik souls/living beings in Vaimanik state? [Ans.] Gautam ! Infinite. [Q.] Bhante ! How many will take place in the future ? [Ans.] Gautam ! Infinite.
४७. [ प्र. ] से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ - ' ओरालियपोग्गलपरियट्टे, ओरालियपोग्गलपरियट्टे' ?
गोयमा ! जंणं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालियसरीरत्ताए गहियाइं बद्धाइं पुट्ठाई कडाई पट्ठवियाइं निविट्ठाई अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं परियाइयाइं परिणामियाइं निज्जिण्णाइं निसिरियाइं निसिट्ठाई भवंति, से णणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - 'ओरालियपोग्गलपरियट्टे, ओरालियपोग्गलपरियट्टे' ।
४७. [प्र.] भगवन्! यह औदारिक पुद्गल - परिवर्त्तन, औदारिक पुद्गल - परिवर्त्तन क्यों कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! जीव ने औदारिक शरीर में रहते हुए, औदारिक शरीर योग्य द्रव्यों को औदारिक शरीर के रूप में ग्रहण किये हैं, बद्ध किये हैं अर्थात् - जीव प्रदेशों के साथ एकमेक किये हैं; शरीर पर रेणु के समान स्पृष्ट किये हैं; अथवा नए-नए ग्रहण करके उन्हें पुष्ट किए हैं;
उन्हें पूर्व परिणाम की अपेक्षा से परिणामान्तर किये हैं; उन्हें प्रस्थापित (स्थिर) किये हैं; निविष्ट ( स्थापित ) किये हैं, अभिनिविष्ट यानि जीव के साथ सर्वथा संलग्न किये हैं; अभिसमन्वागत अर्थात् जीव ने रसानुभूति का आश्रय लेकर सबको समाप्त किये हैं। जीव ने रसग्रहण द्वारा सभी अवयवों से उन्हें पर्याप्त (ग्रहण) कर लिये हैं। परिणामित ( रसानुभूति से ही परिणामान्तर प्राप्त ) कराये हैं, निर्जीण (क्षीण रस वाले) किये हैं; निःसृत (पृथक् ) किये हैं, निःसृष्ट (अपने प्रदेशों परित्यक्त) किये हैं।
अतः हे गौतम! इसी कारण से औदारिक पुद्गल परिवर्तन, औदारिक पुद्गल परिवर्तन कहलाता है।
भगवती सूत्र (४)
(316)
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Bhagavati Sutra ( 4 )
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