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फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ २१. तए णं ते समणोवासगा कल्लं पाउ, जाव जलते व्हाया कयबलिकम्मा जाव
सरीरा सएहिं गेहेहिंतो पडिनिक्खमंति, स. प. २ एगयओ मिलायंति, एगयओ मिलाइत्ता सेसं जहा पढमं जाव पज्जुवासंति ।
[२१] इसके बाद (आहारसहित पौषध कर लेने के बाद) वे सब श्रमणोपासक, ( अगले
दिन) प्रात:काल यावत् सूर्योदय होने पर स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत कर अपने-अपने घरों से निकले और एक स्थान पर मिले। फिर सभी मिलकर पूर्ववत् भगवान की सेवा में पहुँचे, यावत् पर्युपासना करने लगे ।
21. The other shramanopasaks (after observing paushadh with food) left their respective houses after taking bath and adorning
themselves,
and came to a meeting point. Then they all went together to Bhagavan... and so on up to... commenced worship.
भगवान की देशना और शंख श्रमणोपासक की निन्दादि न करने की प्रेरणा
BHAGAVAN'S SERMON AND ADVISE NOT TO CENSURESHANKH
२२. तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य. धम्मकहा जाव
आणाए आराहए भवइ ।
[२२] तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों और उस विशाल परिषद् को धर्मकथा कही (धर्मदेशना दी) । यावत् वे सभी आज्ञा के आराधक हुए।
22. After that Shraman Bhagavan Mahavir gave his sermon to the large gathering... and so on up to ... they all became true spiritual aspirants (aaraadhak).
२३. तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा. उट्ठाए उट्ठेति, उ. २ समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वं. २ जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवा २ संखं समणोवासयं एवं वयासी - "तुमं णं देवाणुप्पिया! हिज्जो अम्हे अप्पणा चेव एवं वयासी– 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं० जाव विहरिस्सामो'। तए णं तुमं पोसहसालाए जाव विहरिए तं सुट्टु णं तुमं देवाणुप्पिया ! हलसि ।"
अम्हे
[२३] तत्पश्चात् वे श्रमणोपासक, श्रमण भगवान महावीर के पास से धर्म (धर्मोपदेश)
सुनकर और हृदय में अवधारण कर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। फिर वे खड़े हुए और श्रमण भगवान
भगवती सूत्र (४)
(238)
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Bhagavati Sutra ( 4 )
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