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19. (On hearing this,) those shramanopasaks observed partial ascetic
vow eating and consuming all that ample food.
शंख तथा अन्य श्रमणोपासकों द्वारा भगवान की सेवा
SHANKH AND OTHER SHRAMANOPASAKS WORSHIP BHAGAVAN
२०. तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरिय जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था - 'सेयं खलु मे कल्लं पाउ, जाव जलते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, एवं सं. २ कल्लं जाव जलते पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पो. प. २ सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, स. प. २ पायविहारचारेणं सावत्थि नयरिं मज्झंमज्झेणं जाव पज्जुवासइ । अभिगमो नत्थि ।
[२०] (दूसरी ओर उस शंख श्रमणोपासक को पूर्वरात्रि व्यतीत होने पर, पिछली रात्रि के समय में धर्म-जागरिकापूर्वक जागरणा करते रहने से इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् (विचार) उत्पन्न हुआ-‘कल प्रात:काल यावत् जाज्वल्यमान (सूर्योदय) हो जाने पर श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार करके यावत् पर्युपासना करके वहाँ से लौट कर पाक्षिक पौषध पालना मेरे लिए श्रेयस्कर है।' इस प्रकार का चिन्तन कर वह प्रातःकाल सूर्योदय होने पर अपनी पौषधशाला से बाहर निकला । शुद्ध ( स्वच्छ ) एवं सभा में प्रवेश करने योग्य मंगल (मांगलिक) वस्त्र ठीक तरह से पहनकर अपने घर से चला और पाद विहार करता हुआ श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर भगवान की सेवा में पहुँचा, यावत् उनकी पर्युपासना करने लगा। वहाँ अभिगम नहीं ( कहना चाहिए। )
20. When the night ended, as a consequence of last night's religious awakening, Shankh shramanopasak was inspired with an idea-'When the sun dawns and there is light it would be beneficial for me to go and offer homage and salutations to Shraman Bhagavan Mahavir and then continue observing my partial ascetic vow.' Resolving thus he spent rest of the night and left his paushadh shaala in the morning. Having properly dressed in fresh and auspicious dress he came out of his residence, walked through Shravasti city and came to Bhagavan... and so on up to... commenced worship. Here abhigam (codes of courtesy meant for a religious assembly) are redundant.
बारहवाँ शतक : प्रथम उद्देशक
(237)
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Twelfth Shatak: First Lesson
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