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शंख श्रमणोपासक की पत्नी द्वारा पुष्कली का स्वागत एवं परस्पर प्रश्नोत्तर 4 SHANKH'S WIFE GREETS PUSHKALI
१५. तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलिं समणोवासयं एज्जमाणं पासइ, पा. २ हट्ठतुट्ठ. आसणाओ अब्भुढेइ, आ. अ. २ सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, स. अ. २ पोक्खलिं समणोवासयं वंदइ नमसइ, वं. २ आसणेणं उवनिमंतेइ, आ. उ. २ एवं वयासी-'संदिसउ णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं?' तए णं से पोक्खली समणोवासए उप्पलं समणोवासियं
एवं वयासी-'कहिं णं देवाणुप्पिए! संखे समणोवासए?' तए णं सा उप्पला समणोवासिया म पोक्खलिं समणोवासयं एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समाणोवासए पोसहसालाए ।
पोसहिए बंभयारी जाव विहरइ।' ___ [१५] इसके बाद पुष्कली श्रमणोपासक को अपने पास आते देखकर वह उत्पला श्रमणोपासिका (शंख श्रमणोपासक की पत्नी) हर्षित और सन्तुष्ट हुई। वह अपने आसन से उठी । और सात-आठ कदम सामने गई। फिर उसने पुष्कली श्रमणोपासक को वन्दन-नमस्कार किया और आसन पर बैठने को कहा। उसके बाद उसने इस प्रकार पूछा-"कहिये, देवानुप्रिय! आपके (यहाँ) . आने का क्या प्रयोजन है?" इस पर उस पुष्कली श्रमणोपासक ने उत्पला श्रमणोपासिका से इस प्रकार कहा-“देवानुप्रिये! शंख श्रमणोपासक कहाँ हैं?" (यह सुनकर) उस उत्पला श्रमणोपासिका ने पुष्कली श्रमणोपासक को इस प्रकार उत्तर दिया-“देवानुप्रिय! वह (शंख श्रमणोपासक) पौषधशाला में पौषध ग्रहण करके ब्रह्मचर्ययुक्त होकर यावत् (धर्मजागरणा कर) रहे हैं।"
15. When she saw shramanopasak Pushkali approaching, Utpala shramanopasika, (Shankh's wife), was pleased and contented. She got up from her seat and took seven-eight steps forward. Then she greeted and saluted Pushkali shramanopasak and offered him a seat. She asked“Please tell me, beloved of gods! What brings you here ?" Pushkali replied to Utpala–“Beloved of gods! Where is shramanopasak Shankh ?" Utpala said to Pushkali–“Beloved of gods ! He is in his paushadh shaala observing partial-ascetic vow (paushadh vrat) with complete celibacy ... and so on up to ... with religious awakening.” पुष्कली द्वारा शंख श्रावक को आहार सहित पौषध का निमंत्रण, शंख द्वारा अस्वीकार PUSHKALI INVITES SHANKH FOR PAUSHADH WITH FOOD INTAKE
१६. तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवा. २ गमणागमणाए पडिक्कमइ, ग. प. २ संखे समणोवासयं वंदइ
| भगवती सूत्र (४)
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Bhagavati Sutra (4) ssssssssssssssssssssssssssssssssssssss