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विवेचन-श्रमण भगवान महावीर के दर्शन करके वापिस लौटते समय शंख श्रावक को अचानक सामूहिक रूप से आहार सहित पौषध करने का विचार सूझा किन्तु थोड़ी ही देर में शंख के मन में उत्कृष्ट
त्यागभाव के कारण निराहार रहकर अकेले ही अपनी पौषधशाला में पाक्षिक पौषध के अनुपालन करने 5 का विचार उत्पन्न हुआ जिसे उसने पत्नी से परामर्श किया फिर पौषधशाला में गया और अकेले ही 5
निराहार पौषध अंगीकार करके धर्मजागरणा किया। अब यहाँ यह प्रश्न होता है कि आहारसहित पौषध जैसे सामूहिक रूप से किया जाता है, तो क्या निराहार पौषध सामूहिक रूप से नहीं हो सकता? वृत्तिकार इसका
समाधान करते हुए कहते हैं कि निराहार पौषध पौषधशाला में अकेले करना कल्पनीय है। लेकिन यदि फ पौषधशाला में अनेक श्रावक मिलकर सामहिक रूप से भी निराहार पौषध करते हैं तो इसमें कोई दोष भी 卐 म नहीं है, बल्कि सामूहिक रूप से पौषध करने से सामूहिक रूप से स्वाध्याय करने अर्थात् बोल-थोकड़े ॐ आदि का स्मरण करने में सुविधा होती है, और विशेष लाभ भी होता है। अतः सामूहिक पौषध में विशिष्ट +गुणों की सम्भावना रहती है।
Elaboration—While returning after paying homage to Shraman 4 Bhagavan Mahavir, shramanopasak Shankh suddenly thought of
observing paushadh vrat with food in a group. However, a little later Yi Shankh changed the idea and opted for solitary vow without food. After
consulting his wife he went into his personal austerity chamber and 41 observed the vow. This gives rise to a question that like paushadh vrat
with food is observed in a group, can the same vow without food also be observed in group. The commentator (Vritti) explains that it is prescribed to observe this vow alone but there is nothing wrong if it is also done in a group. In fact when done in a group it is convenient to do study and 1 chanting as it helps recalling the texts. Thus observation in a group has more merits.
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आहार तैयार करने के उपरांत पुष्कली का शंख को बुलाने के लिए जाना AFTER PREPARING FOOD PUSHKALI GOES TO INVITE SHANKH
१३. तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव साइं साइं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति, ते. उ. २ विउलं असणं-पाणं-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, उ. २ अन्नमन्नं
सहावेंति, अन्न. स. २ एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं से विउले ॐ असण-पाण-खाइम-साइमे उवक्खडाविए, संखे य णं समणोवासए नो हव्वमागच्छइ। तंभ ॐ सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं संखं समणोवासयं सद्दावेत्तए।'
फा भगवती सूत्र (४)
(232)
Bhagavati Sutra (4)
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