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५१. तए णं से महब्बले कुमारे उप्पि पासायवरगए जहा जमाली (स. ९ उ. ३३) जाव 卐 विहरइ।
[५१] तत्पश्चात् वह महाबल कुमार (श, ९, उ. ३३ में कथित) जमालि कुमार के वर्णन के अनुसार उत्तम प्रासाद में अपूर्व भोग भोगता हआ जीवन बिताने लगा।
51. Then that prince Mahabal lived in that great palace enjoying unprecedented comforts and pleasures as described about prince Jamali 卐 (Chapter-9, Lesson-33).
धर्मघोष अनगार का पदार्पण, जनता द्वारा पर्युपासना 4. ARRIVAL OF ASCETIC DHARMAGHOSH
५२. तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे में जाइसंपन्ने, वण्णओ जहा केसिसामिस्स जाव पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे ॐ पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणाउरे नयरे जेणेव सहसंबवणे में उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवा. २ अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हइ, ओ. २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विरहइ।
[५२] उस काल और उस समय में तेरहवें तीर्थंकर अर्हन्त विमलनाथ के प्रपौत्र में ॐ (प्रशिष्य-शिष्यानुशिष्य) धर्मघोष नामक अनगार थे। वे जातिसम्पन्न इत्यादि (राजप्रश्नीय सूत्र में के म दिये अनुसार) केशी स्वामी के समान थे, यावत् पाँच सौ अनगारों के परिवार के साथ अनुक्रम से म एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विहार करते हुए हस्तिनापुर नगर के सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे और
यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने 卐 लगे। 4 52. During that period of time lived ascetic Dharmaghosh who was
a great-grand-disciple of the thirteenth Tirthankar Arhant Vimal Naath. He belonged to a noble clan etc. (as mentioned in Rajaprashniya Sutra) and was like Keshi Shraman. ... and so on up to ... With a family of five hundred ascetics, moving from one village to another, he arrived in Sahasramravan garden in Hastinapur city. Seeking suitable place and equipment he camped there enkindling his soul with his practices of penance and discipline.
५३. तए णं हथिणाउरे नयरे सिंघाडग-तिय जाव परिसा पज्जुवासइ। __ [५३] तब हस्तिनापुर नगर के शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत-से लोग मुनि-आगमन में की परस्पर चर्चा करने लगे यावत् जनता पर्युपासना करने लगी।
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| भगवती सत्र (४)
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Bhagavati Sutra (4) |
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