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________________ 55555555555555555555555555555555 फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ 53. Then many citizens discussed about the arrival of the ascetic on squares, crossings... and so on up to... main roads of Hastinapur city... and so on up to... people started his worship. महाबलकुमार द्वारा दीक्षाग्रहण INITIATION OF PRINCE MAHABAL ५४. तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स तं महया जणसद्दं वा जणवूहं वा एवं जहा जमाली ( स. ९ उ. ३३) तहेव चिंता, तहेव कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, कंजुइज्जपुरिसो वि तव अक्खाइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल जाव निग्गच्छइ। एवं खलु देवाणुप्पिया ! विमलस्स अरहओ पउप्पर धम्मघोसे नामं अणगारे सेसं तं चेव जाव सो वि तहेव रहवरेणं निग्गच्छइ । धम्मकहा जहा केसिसामिस्स । सो वि तहेव ( स. ९ उ. ३३) अम्मापियरं आपुच्छइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए तहेव वुत्तपडिवुत्तिया (स. ९ उ. ३३) नवरं इमाओ य ते जाया! विउलरायकुलबालियाओ कला. सेसं तं चेव जाव ताहे अकामाइं चेव महब्बलकुमारं एवं वयासी- तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासित्तए । [५४] इसके बाद उस महाबल कुमार ने ( धर्मघोष मुनि के दर्शन को जाते हुए) बहुत-से मनुष्यों का कोलाहल एवं चर्चा सुनकर (श. ९ उ. ३३ में उल्लिखित) जमालि कुमार के समान विचार करते हुए अपने कंचुकी पुरुष को बुलाकर (इसका कारण पूछा। तब कंचुकी पुरुष ने (पूर्ववत्) हाथ जोड़कर महाबल कुमार से निवेदन किया- देवानुप्रिय ! विमलनाथ तीर्थंकर के प्रपौत्र शिष्य श्री धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् महाबल कुमार, जमालि कुमार की तरह (पूर्ववत् ) उत्तम रथ पर बैठा और वहाँ पहुँचकर मुनि को वन्दना करने लगा। धर्मघोष अनगार ने भी केशी स्वामी के समान धर्मोपदेश (धर्मकथा ) दिया जिसे सुनकर महाबल कुमार को भी (श. ९, उ. ३३ में कथित वर्णन के अनुसार) जमालि कुमार के समान वैराग्य उत्पन्न हुआ । घर आकर महाबल कुमार ने उसी प्रकार ( जमालि कुमार की तरह) माता-पिता से अनगार धर्म में प्रव्रजित होने की अनुमति माँगते हुए कहा - हे माता-पिता ! धर्मघोष अनगार से मैं मुण्डित होकर आगारवास (गृहवास) से अनगार धर्म में प्रव्रजित होना चाहता हूँ। (श. ९, उ. ३३ में वर्णित वर्णन के अनुसार) जमालि कुमार के समान महाबल कुमार और उसके माता-पिता में उत्तर - प्रत्युत्तर हुए। माता-पिता ने महाबल कुमार से कहा- हे पुत्र ! यह विपुल धन और उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुई अनेक कलाओं में कुशल आठ कुलबालाओं को छोड़कर तुम क्यों दीक्षा ले रहे हो ? इत्यादि शेष वर्णन पूर्ववत् है यावत् माता-पिता ने अनिच्छापूर्वक महाबल कुमार से इस प्रकार कहा - " हे पुत्र ! हम एक दिन के लिए तुम्हारी राज्य लक्ष्मी ( राजा के रूप में तुम्हें) देखना चाहते हैं । " ग्यारहवाँ शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक (203) Eleventh Shatak: Eleventh Lesson 959955 1959595 5 5 5 5 5 5 5 55555555558 W 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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