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855555555555555555555555555555555555558 मी ४२. तए णं से बले राया दसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीए सइए य साहस्सिए य 卐 सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य सइए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य लंभे पडिच्छेमाणे य पडिच्छावेमाणे य एवं विहरइ।
[४२] इन दस दिनों में जब पुत्र-जन्म महोत्सव की प्रक्रिया (स्थितिपतिता) चल रही थी, ॐ तब बल राजा सैकड़ों, हजारों और लाखों रुपयों के खर्च वाले श्रेष्ठ कार्य करता रहा तथा दान
और अपनी सम्पत्ति का भाग देता और दिलवाता हआ सैकड़ों हजारों और लाखों रुपयों के लाभ + (उपहार) देता और स्वीकार करता रहा।
42. While these celebrations were going on, King Bal kept on spending hundreds and thousands and millions of gold coins on altruistic
activities. He ceremoniously gave donations as well as accepted presents 4 and gifts of hundreds and thousands and millions of gold coins.
४३. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेइ, तइए दिवसे म चंदसूरदंसावणियं करेइ, छठे दिवसे जागरियं करेइ। एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते,
निव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे, संपत्ते-बारसाहदिवसे विउलं असणं-पाणं-खाइम-साइमं म उवक्खडावेंति, उ. २ जहा सिवो (स. ११ उ. ९) जाव खत्तिए य आमंति, आ. २ तओ
पच्छा ण्हाया कय. तं चेव जाव सक्कारेंति सम्माणति, स. २ तस्सेव मित्त-नाइ जावराईण है म य खत्तियाण य पुरओ अज्जयपज्जयपिउपज्जयागयं बहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं
कुलसरिसं कुलसंताणतंतुवद्धणकर अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिष्फन्नं नामधेज्ज करेंति
जम्हा णं अम्हं इमे दारए बलस्स रण्णो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए तं होउ णं अम्हं के एयस्स दारगस्स नामधेज्जं महब्बले। तए णं तस्य दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति के 'महब्बले' त्ति।
[४३] इसके बाद उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन कुल की परम्परा के अनुसार ॐ प्रक्रिया (स्थितिपतिता) की। फिर तीसरे दिन (बालक को) चन्द्र-सूर्य के दर्शन कराए। छठे दिन ॥
जागरिका की क्रिया (जागरणरूप उत्सव क्रिया) की। ग्यारह दिन बीत जाने के बाद अशुचि । जातककर्म की निवृत्ति को। बारहवाँ दिन आने पर विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम (चतुर्विध आहार) तैयार कराया। फिर (श. ११, उद्देशक ९, सू. ११ में कथित) शिव राजा के समान यावत् समस्त क्षत्रियों अर्थात् ज्ञातिजनों को आमंत्रित किया और भोजन कराया।
फिर स्नान एवं बलिकर्म किए हुए राजा ने उन सभी मित्रों, ज्ञातिजनों आदि का सत्कार-सम्मान किया। तदोपरान्त उन्हीं मित्र, ज्ञातिजन यावत् राजा और क्षत्रियों के समक्ष अपने पितामह, ॐ प्रपितामह एवं पिता के प्रपितामह आदि से चली आ रही अनेक पुरुषों की परम्परा से रूढ़, कुलभ
के अनुरूप, कुल के सदृश, कुलरूप सन्तान-तन्तु की वृद्धि करने वाला, गुणयुक्त एवं गुणनिष्पन्न । | ग्यारहवां शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक (193) Eleventh Shatak : Eleventh Lesson |
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