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कुलकित्तिकरं कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवर्द्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीणपुण्णपंचिंदियसरीरं जाव ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते वित्थिण्णविउलबलवाहणे रज्जवई राया भविस्स । तं ओराले गं तुमे देवी! सुमिणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि. जाव मंगल्लकारए णं तुमे देवी ! सुविणे दिट्ठे" त्ति कट्टु पभावई देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुवूहइ ।
[२४] तदनन्तर वह बल राजा प्रभावती देवी की इस स्वप्नदर्शन की बात को सुनकर और हृदय में धारण कर हर्षित और सन्तुष्ट हुआ यावत् उसका हृदय आकर्षित हुआ । मेघ की धारा से 5 विकसित कदम्ब के सुगन्धित पुष्प के समान उसका शरीर पुलकित हो उठा, रोम-रोम विकसित हो उठे। राजा बल ने उस स्वप्न के विषय में अवग्रह ( सामान्य- विचार) करके ईहा (विशेष विचार) में प्रवेश किया, फिर उसने अपने स्वाभाविक बुद्धि विज्ञान से उस स्वप्न के फल का निश्चय किया। तदनन्तर इष्ट, कान्त, मंगलमय, परिमित, मधुर एवं शोभायुक्त सुन्दर वचन बोलता हुआ वह रानी प्रभावती से बोला - "हे देवी! तुमने उदार स्वप्न देखा है। देवी ! तुमने कल्याणकारक यावत् शोभायुक्त स्वप्न देखा है। हे देवी! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याणरूप और मंगलकारक स्वप्न देखा है। हे देवानुप्रिये ! तुम्हें अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। हे देवानुप्रिये! नौ मास और साढ़े सात दिन (अहोरात्र) व्यतीत होने पर तुम हमारे कुल में केतु-(ध्वज) समान, कुल के दीपक, कुल में पर्वत के समान, कुल का शिखर, कुल का तिलक, कुल की कीर्ति फैलाने वाले, कुल को आनन्द देने वाले, कुल का यश बढ़ाने वाले, कुल आधार, कुंल में वृक्ष समान, कुल की वृद्धि करने वाले, सुकुमाल हाथ-पैर वाले, अंगहीनता रहित, परिपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीर वाले, यावत् चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन, सुरूप एवं देवकुमार के समान कान्ति वाले पुत्र को जन्म दोगी।"
वह बालक भी बालभाव से मुक्त होकर विज्ञ और कलादि में परिणत होगा । यौवनवय प्राप्त होते ही वह शूरवीर, पराक्रमी तथा विस्तीर्ण एवं विपुल बल और वाहन वाला राज्याधिपति राजा होगा। अतः हे देवी! तुमने उदार (प्रधान) स्वप्न देखा है। देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है, इस प्रकार बल राजा ने प्रभावती देवी को इष्ट यावत् मधुर वचनों से वही बात दो बार और तीन बार कही।
24. Queen Prabhavati's words about seeing this dream filled King Bal with joy, contentment... and so on up to ... enchantment. His heart also brimmed over with delightful ecstasy. He pondered over the dreams with the help of his inborn intelligence, discerning mind, and analytical
ग्यारहवाँ शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक
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Eleventh Shatak: Eleventh Lesson
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