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In her dream Queen Prabhavati saw a lion that was white like a pearl-necklace, silver, ocean of milk, moonlight, water drop, and a great mound of silver. It was huge, attractive and appealing. It had beautiful and stable limbs. Its mouth was open showing round, strong, well proportioned and very sharp molars. Its lips were beautiful, uniform and delicate like a clean good quality lotus. Its palate and tongue were soft like petals of red lotus. Its eyes were golden and round like whirling molten gold poured in a crucible and were radiant like lightening. It had large, strong thighs and prominent shoulders. A soft, white, fine, thick and prominent mane added to its beauty. The queen saw that graceful lion descending from the sky swinging its beautiful and shapely tail and entering her lotus-pond like mouth. Seeing such lion in her dream, the queen woke up.. रानी का स्वप्न निवेदन और स्वप्न-फल कथन आग्रह QUEEN NARRATES HER DREAM AND SEEKS ITS MEANING . २३. तएणं सा पभावई देवी अयमेयारूवं ओरालं जाव सस्सिरियं महासुविणं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्ठतुट्ठ जाव हियया धाराहयकलंबपुष्फगं पिवई
समूसवियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, स.अ.२ की ॐ अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रण्णो सयणिज्जे के
तेणेव उवागच्छइ, ते. उ. २ बलं रायं ताहिं इट्ठाहिं कताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ॐ ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं के
संलवमाणी संलवाणी पडिबोहेइ, पडि. २ बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणि-रयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीयित्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव संलवमाणी संलवमाणी एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगण. तं चेव जाव नियगवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। तं णं देवाणुप्पिया? एयस्स ओरालस्स जाव महासुविणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ?
[२३] प्रभावती रानी इस प्रकार के उदार एवं शोभावान महास्वप्न को देख जागृत होकर अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई; वह वर्षा की जलधारा से विकसित कदम्ब-पुष्प के समान : 卐 रोमांचित होती हुई उस स्वप्न का स्मरण करने लगी। फिर वह अपनी शय्या से उठी और शीघ्रता ॥ प से रहित तथा अचपल, असम्भ्रमित (हड़बड़ी से रहित) एवं अविलम्बित, राजहंस समान गति से के चलकर बल राजा की शय्या के पास आई और बल राजा की शय्या के पास आकर उन्हें उन ॥ के इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, उदार, कल्याणरूप, शिव, धन्य, मंगलमय तथा शोभायुक्त की
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ग्यारहवाँशतक: ग्यारहवाँ उद्देशक
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Eleventh Shatak : Eleventh Lesson
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