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तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टीए उभयो बिब्बोयणे दुहओ उन्नए मज्झे णय-गंभीरे । गंगापुलिणवालुयउद्दालसालिसए उवचियखोमियदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे सुविरइयरयत्ताणे
रत्तंसयसंवए सरम्मे आइणग-रूय-बूर-नवणीय-तूलफासे सुगंधवरकुसुमचुण्णसयणोॐ वयारकलिए अद्धरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी अयमेयारूवं
ओरालं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगल्लं सस्सिरियं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा। हार-रयय-खीर-सागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेलपंडुरतरोरुरमणिज्जपेच्छणिज्जं थिरलट्ठपउट्ठवट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहं परिकम्मियजच्चकमलकोमलमाइयसोभंतलट्ठउठें रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहं मूसागयपवरकणगतावियआवत्तायंतवट्टतडिविमलसरिसनयणं विसालपीवरोरुपडिपुण्णविपुलखधं मिउविसयसुहुमलक्खणपसत्थवित्थिण्णकेसरसडोवसोभियं ऊसियसुनिम्मियसुजायअप्फोडियणंगूलं सोमं सोमाकारं लीलायंतं ॥ जंभायंतं नहयलायो ओवयमाणं निययवयणकमलसरमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा।
[२२] किसी दिन वह प्रभावती देवी उस प्रकार के वासभवन के भीतर, उस प्रकार की ॐ अनुपम शय्या पर सोई थी। वह वासभवन, भीतर से चित्रित तथा बाहर से सफेदी किया हुआ एवं + घिस कर चिकना बनाया हुआ था। जिसका ऊपरी भाग विविध चित्रों से रंगा हुआ तथा नीचे का ॐ भाग प्रकाश से देदीप्यमान था। मणियों और रत्नों के कारण उस वासभवन में अन्धकार नहीं था। म उसका भू-भाग बहुतसम और सुविभक्त था। वह पाँच वर्ण के सरस और सुगन्धित पुष्पपुंजों के 5 उपचार से युक्त था। उत्तम कालागुरु (काला अगर), कुन्दरुक और तुरुष्क (शिलारस) के धूप
से वह वासभवन चारों ओर से सुगंधित था। सुगन्धी पदार्थों से वह सुवासित एवं सुगन्धी द्रव्य की गुटिका के समान था। ऐसे वासंभवन में जो शय्या थी, वह अपने आप में अद्वितीय थी तथा शरीर के
से स्पर्श करते हुए उपधान (पार्श्ववर्ती तकिये) से युक्त थी। उस शय्या के दोनों तरफ (सिरहाने 5 और पादतल) तकिये रखे हुए थे। वह (शय्या) दोनों ओर से उन्नत, बीच में कुछ नमी हुई एवं
गहरी थी, गंगा नदी की तटवर्ती बालू के अवदाल (पैर रखते ही नीचे धस जाने) के समान है
कोमल थी। वह परिकर्मित क्षौमिक-रेशम के समान मुलायम चादर से ढंकी हुई तथा सुन्दर ॐ सुरचित रजस्त्राण (पादलुंछन) से युक्त थी। रक्तांशुक (लाल रंग के सूक्ष्म वस्त्र) की मच्छरदानी ॥
उस पर लगी हुई थी। वह सुरम्य आजिनक (एक प्रकार के चमड़े का कोमल वस्त्र), रूई, बूर, नवनीत तथा अर्कतूल (आर्क की रूई) के समान कोमल स्पर्श वाली थी; तथा सुगन्धित श्रेष्ठपुष्प, चूर्ण एवं शयनोपचार (शयन-उपकरण) से युक्त थी।
ऐसी शय्या पर सोई हुई प्रभावती रानी ने अर्धरात्रि काल के समय अर्धनिद्रित अवस्था में ॐ एक उदार, कल्याणरूप, शिव, धन्य, मंगलकारक एवं शोभायुक्त (सश्रीक) महास्वप्न देखा और भी जागृत हो गई।।
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ग्यारहवाँशतक : ग्यारहवाँ उद्देशक
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Eleventh Shatak : Eleventh Lesson