________________
* 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 8
फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ
[उ. ] 'गोयमा ! गए बहुए, नो अगए बहुए, गयाउ से अगए असंखेज्जइभागे, अगयाउ असंखेज्जगुणे । लोए णं गोयमा ! एमहालए पन्नत्ते ।
'
२६-२. [प्र.] भगवन् ! उन देवों का गत ( गया हुआ - उल्लंघन किया हुआ) क्षेत्र अधिक है
या अगत (नहीं गया हुआ - नहीं चला हुआ) क्षेत्र अधिक है ?
[उ.] गौतम ! ( उन देवों का ) गतक्षेत्र अधिक है, अगतक्षेत्र, गतक्षेत्र के असंख्यातवें भाग है। अगतक्षेत्र से गतक्षेत्र असंख्यात गुणा है । हे गौतम! लोक इतना बड़ा ( महान्) है।
26-2. [Q.] Bhante ! Is the part crossed by those gods greater or that not yet crossed is larger ?
[Ans.] Gautam ! The part crossed by those gods is greater. The part yet to be crossed is only an innumerable fraction of the crossed one. The traversed part is innumerable times more than that not yet crossed. O Gautam! The Universe (Lok) is so vast.
कुछ
विवेचन—यह शंका हो सकती है कि मेरुपर्वत की चूलिका से चारों दिशाओं में लोक का विस्तार आधा-आधा रज्जुप्रमाण है। ऊर्ध्वलोक में किंचित् न्यून सात रज्जू और अधोलोक में सात रज्जू से अधिक है। ऐसी स्थिति में वे सभी देव छहों दिशाओं में एक समान त्वरित गति से जाते हैं, तब फिर छहों दिशाओं में गतक्षेत्र से अगतक्षेत्र असंख्यातवें भाग तथा अगत से गतक्षेत्र असंख्यात गुणा कैसे बतलाया गया हैं, क्योंकि चारों दिशाओं की अपेक्षा ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा में क्षेत्र - परिमाण की विषमता है ? इस शंका
का समाधान यह है कि यहाँ घनकृत ( वर्गीकृत) लोक की विवक्षा से यह रूपक कल्पित किया गया है, इसलिए कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । मेरुपर्वत को मध्य में रखने से लोक सब तरफ से साढ़े तीन-साढ़े तीन रज्जू रह जाता I
[प्र.] पूर्वोक्त तीव्र दिव्य देवगति से गमन करते हुए वे देव जब उतने लम्बे समय तक में लोक का छोर नहीं प्राप्त कर सकते, तब तीर्थंकर भगवान के जन्मकल्याणादि में अन्तिम अच्युत देवलोक तक से देव यहाँ शीघ्र कैसे आ सकते हैं, क्योंकि क्षेत्र बहुत लम्बा है और अवतरण - काल बहुत ही अल्प है ?
[उ.] इसका समाधान यह है कि तीर्थंकर भगवान के जन्मकल्याणादि में देवों के आने की गति शीघ्रतम है। उस गति की अपेक्षा से इस प्रकरण में बताई हुई गति अति मन्दतर है।
Elaboration-In this example there may be a doubt. In the said description of the Lok the transverse expanse of the universe from the peak of Mt. Meru is only half a Rajju, whereas in zenith and Nadir directions it is about 7 Rajju. As such how can the time traversed by the gods in all directions be same? The explanation is that this statement is metaphoric and based on the presumption of a cubical universe making the distances in all directions same.
Another doubt is that when it takes so much time for gods to reach the end of the universe, how can the gods from the last divine realm
ग्यारहवाँ शतक : दसवाँ उद्देशक
(153)
Eleventh Shatak: Tenth Lesson
卐
95 95 95 95 95 95 95 95555555555555555555555595959595959559595959 195
0 95 95 95 95 95 95 95 95 9555555555 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 9559559595958