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(Achyut) can come to attend a Tirthankar's Kalyanak (auspicious events). The explanation is that the speed at which the gods come on such occasions is the maximum speed of gods whereas the speed mentioned in this example is the minimum.
अलोक की विशालता का वर्णन THE VASTNESS OF ALOK
२७- १. [ प्र. ] अलोए णं भंते ! केमहालय पन्नत्ते ?
[ उ. ] गोयमा ! अयं णं समयखेत्ते पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं जहा खंदए (स. २ उ. १) जाव परिक्खेवेणं । तेणं कालेणं तेणं समएणं दस देवा महिड्डीया तहेव जाव संपरिक्खित्ताणं संचिट्ठेज्जा, अहे णं अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ अट्ठ बलिपिंडे गहाय माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स चउसु वि दिसासु चउसु वि विदिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा । ते अट्ठ बलिपिंडे जमगसमगं बहियाभिमुहे पक्खिवेज्जा । पभू णं गोयमा! तओ एगमेगे देवे ते अट्ठ बलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए । ते णं गोयमा! देवा ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए लोगंते ठिच्चा असब्भावपट्टवणाए एगे देवे पुरत्थाभिमुहे पयाए, एगे देवे दाहिणपुरत्थाभिमुहे पयाए, एवं जाव उत्तरपुरत्थाभिमुंहे, एगे देवे उड्डाभिमुहे, एगे देवे अहोभिमुहे पयाए । तेणं कालेणं तेणं समएणं वाससयसहस्साउए दारए पयाए। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति नो चेव णं ते देवा अलोयंतं संपाउणंति।' तं चेव जाव 'तेसिं णं भंते! देवाणं किं गए बहुए, अगए बहुए ?' 'गोयमा ! नो गए बहुए, अगए बहुए, गयाउ से अगए अनंतगुणे, अगयाउ से गए अनंतभागे। अलोए णं गोयमा ! एमहालए पन्नत्ते । '
२७-१. [प्र.] भगवन्! अलोक कितना बड़ा है ?
[उ.] गौतम! यह जो समयक्षेत्र ( मनुष्यक्षेत्र) है, वह ४५ लाख योजन लम्बा-चौड़ा है, इत्यादि सब (श. २, उ. १) स्कन्दक प्रकरण के अनुसार जानना चाहिए; यावत् वह (ऊपरवत्) धियुक्त है।
किसी काल, किसी समय में, दस महर्द्धिक देव, इस मनुष्यलोक को चारों ओर से घेर कर
खड़े हों। उनके नीचे आठ दिशाकुमारियाँ, आठ अन्नपिण्ड लेकर मानुषोत्तर पर्वत की चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में बाह्याभिमुख होकर खड़ी रहें। तत्पश्चात् वे उन आठों बलिपिण्डों को एक साथ मानुषोत्तर पर्वत के बाहर की ओर फेंके। तब उन खड़े हुए देवों में से प्रत्येक
देव उन बलिपिण्डों को पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व शीघ्र ही ग्रहण करने में समर्थ हों, ऐसी शीघ्र, उत्कृष्ट तीव्र देवगति वाले वे दसों देव, लोक के अन्त में खड़े रह कर उनमें से एक देव पूर्व दिशा की ओर जाए, एक देव दक्षिण पूर्व की ओर जाए, इसी प्रकार यावत् एक देव उत्तरपूर्व
भगवती सूत्र (४)
(154)
Bhagavati Sutra (4)
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