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________________ स 0555555555555555555555555555555))))))))))एक ଖsssssssssssssssssssssssssssssssssssss heavy-non-light) modes. However, it has a section of non-soul. It is endowed with infinite agurulaghu (non-heavy-non-light) attributes and it is infinite parts less than the whole space. लोक की विशालता VASINESS OF THE LOK २६-१. [प्र.] लोए णं भंते ! के महालए पण्णत्ते? ___ [उ.] गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव. जाव परिक्खेवेणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्डीया जाव महेसक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठज्जा। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि है बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि दिसासु बहिया अभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि + बलिपिंडे जमगसमगं बहियाभिमुहे पक्खिवेज्जा। पभू णं गोयमा! तओ एगमेगे देवे ते ॐ चत्तारि बलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए। ते णं गोयमा! देवा ताए म उक्किट्ठाए जाव देवगईए एगे देवे पुरत्थाभिमुहे पयाए, एवं दाहिणाभिमुहे, एवं पच्चत्थाभिमुहे, ॐ एवं उत्तराभिमुहे, एवं उड्डाभिमुहे, एगे देवे अहोभिमुहे पयाए। तेणं कालेणं तेणं समएणं' वाससहस्साउए दारए पयाए। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, नो चेव णं ही ॐ ते देवा लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स आउए पहीणे भवइ, नो चेव णं जाव' के संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स अट्ठिमिंजा पहीणा भवंति, नो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स आसत्तमे वि कुलवंसे पहीणे भवइ, नो चेव णं ते देवा के लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स नाम-गोए वि पहीणे भवइ, नो चेव णं ते देवा ॥ लोगंतं संपाउणंति। २६-१. [प्र.] भगवन्! लोक कितना बड़ा (महान्) कहा है? ___ [उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नाम का यह द्वीप, समस्त द्वीप-समुद्रों के मध्य में है। इसकी परिधि के तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। अगर किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत् महासुख-सम्पन्न छह देव, मेरू पर्वत पर उसकी चूलिका के चारों ओर खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारी देवियाँ चार अन्नपिण्ड लेकर जम्बूद्वीप की (जगती पर) चारों दिशाओं में बाहर की ओर मुख करके खड़ी रहें। फिर वे ॐ चारों देवियाँ एक साथ चारों अन्नपिण्डों को बाहर की ओर फैंकें। हे गौतम! उसी समय उन देवों म में से प्रत्येक देव, उन अन्नपिण्डों को पृथ्वी पर गिरने से पहले ही, शीघ्र ग्रहण करने में समर्थ हो ॐ ऐसी तीव्र गति वाले उन देवों में से एक देव, उस उत्कृष्ट यावत् तीव्र गति से पूर्व की ओर जाए, है एक देव दक्षिण की ओर जाए, इसी प्रकार एक देव पश्चिम की ओर, एक उत्तर की ओर, एक | ग्यारहवाँशतक : दसवाँ उद्देशक (151) Eleventh Shatak : Tenth Lesson |
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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