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________________ 9555555555555555555555555555555555 म को प्राप्त होता है और उसकी निवृत्ति करने से लघुत्व को प्राप्त होता है।" जयन्ती-“भन्ते! जीव सोता हुआ अच्छा है अथवा जागता हुआ?" भगवान महावीर-"जयन्ती! कितने ही जीवों का सोना अच्छा है और कितने ही जीवों का जागना अच्छा है। जो जीव अधर्म और अनीतिपूर्ण कार्य करता है, दूसरों को कष्ट देता है उसका सोना अच्छा है और जो जीव धर्मयुक्त एवं नीतिपूर्वक कार्य करता है, उसका जागना अच्छा है।" इसी कथन पर कबीर ने एक दोहा प्रस्तुत किया है सोया संत जगाइए, करे नाम का जाप। तीनों सोते हैं भले, साकत, सिंह और साँप॥ इसके बाद नरक की सात पृथ्वियों, पुद्गल परावर्तन पर विचार, रूपी-अरूपी पर चिन्तन तथा लोक व आठ प्रकार की आत्मा का विस्तृत वर्णन भी 12वें शतक में व्यवहृत किया गया है। ____ तेरहवें शतक के प्रथम उद्देशक में नरक की सात पृथ्वियों के सम्बन्ध में विस्तृत प्रश्नोत्तर हैं। द्वितीय उद्देशक में चारों निकाय के देवों के आवासादि का वर्णन है। तृतीय उद्देशक में नैरयिक . जीवों के अनन्तराहारादि के बारे में प्ररूपणा की गई है। चूँकि भगवती सूत्र अन्य आगमों की अपेक्षा अत्यधिक विशाल है जिसकी विषय-वस्तु में प्रायः विभिन्नता एवं विविधता देखने को मिलती है। अतः प्रस्तुत मूलसूत्र के भावानुवाद के साथ जहाँ-जहाँ आवश्यकता हुई वहाँ-वहाँ हमने सरल, सरस एवं संक्षिप्त विधा में विवेचन प्रस्तुत किए हैं ताकि सुज्ञ पाठकों को कोई भी विषय समझने में परेशानी न हो। प्रस्तुत मूल सूत्र में अनेक स्थानों पर आगमकार ने प्रज्ञापना सूत्र का सन्दर्भ देखने की सूचना देकर विषय को काफी संक्षिप्त कर दिया है लेकिन हमने यहाँ प्रज्ञापना सूत्र का वह अंश विस्तृत रूप से प्रस्तुत कर पाठकों को पूरा विषय समझने में सुविधा दे दी है। इतना ही नहीं स्थान-स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विषयों को समझने के लिए भावपूर्ण सुरम्य रंगीन चित्रों का चित्रांकन भी किया गया है ताकि ये चित्र पाठकों के हृदय-अंतराल को स्पर्श कर जाए जिससे वह उस विषय को समझकर जिनशासन रसिक बनें। इसके विस्तृत विवेचन में मेरे द्वारा पूर्व में अनुवादित भगवती सूत्र में किए गए विवेचन के काफी अंश यहाँ भी लिए गए हैं। इसके साथ-साथ पण्डित श्री घेवरचन्द जी शास्त्री का हिन्दी विवेचन और आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा भगवती सूत्र पर किया गया विवेचन भी हमने सामने (9) 85555555555555555555555555555555555555
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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