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________________ &卐))))))) )))))))))))))))))))))) IRAAMAIMIMARIWRMIRMIRMA प्रागवक्तव्य महापुरुषों की वाणी में एक ऐसी अद्भुत शक्ति होती है कि जब वह किसी विषय का विश्लेषण करते हैं तो श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनका उपदेश गहन अनुभूतियों की छलनी से छना वह साररूप होता है जिसमें कुछ भी अंश व्यर्थ जैसा नहीं होता। इन्हीं महापुरुषों में एक हैं श्रमण भगवान महावीर, जिनके उपदेशों को गणधरों ने अपनी महाप्रज्ञता से द्वादशांगी का रूप दिया है जो आज आगम साहित्य के रूप में सम्पूर्ण जगत् को सर्वत्र आलोकित कर रहे हैं। इन की आगम ग्रंथों में जो ग्रंथ द्वादशांगी का सबसे बड़ा महासागर कहा जाता है, वह भगवती सूत्र' है। विश्व विधा की ऐसी कोई भी अभिधा नहीं जिसकी प्रस्तुत आगम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चर्चा न की गई हो। इस आगम की विस्तृत जानकारी प्रथम भाग की प्रस्तावना में दी जा चुकी है। अतः यहाँ उसके पुनरावर्तन की आवश्यकता नहीं है। पूर्व प्रकाशित तीन भागों में इस सूत्र के शतक 1 से लेकर शतक 9 तक का वर्णन किया जा चुका है। अब इस चतुर्थ भाग में 10वें शतक से लेकर 13वें शतक के तृतीय उद्देशक तक.दिये गये हैं। दसवें शतक में दिशा संवृत अधिकार, उत्तर अन्तरद्वीप आदि का निरूपण किया गया है। ___ग्यारहवें शतक के प्रारम्भ में हस्तिनापुर निवासी शिवराजर्षि का उल्लेख है जिसने पूर्व में दीक्षा-प्रोक्षक तापस दीक्षा ग्रहण की थी परन्तु बाद में वह भगवान महावीर का शिष्य बना। आखिर वह प्रभु वीर का शिष्य क्यों बना? इसके बारे में बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत शतक में विवेचन दिया गया है। इसके अतिरिक्त सुदर्शन श्रेष्ठी की काल सम्बन्धी जिज्ञासाएँ तथा महाबल एवं आलंभिका के ऋषिभद्र पुत्र का वर्णन भी इसी शतक में किया गया है। . बारहवें शतक में श्रावस्ती के शंख और पोक्खली श्रावकों के पाक्षिक पौषध करने का उल्लेख है। तत्पश्चात् श्रमणोपासिका जयन्ती द्वारा श्रमण भगवान महावीर से जीव के सम्बन्ध में अनेक प्रश्नों की पृच्छा और प्रभु महावीर द्वारा बड़े ही सुन्दर, सहज तरीके से उनका समाधान किया गया है। श्रमणोपासिका जयन्ती प्रश्न करती है-"भन्ते! जीव गुरुत्व को कैसे प्राप्त होता है?" प्रभु महावीर कहते हैं-"जयन्ती! प्राणातिपात आदि 18 दोषों का सेवन करने से जीव गुरुत्व है &55555555555555555555555
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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