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43. [Q.] Bhante ! Is their death caused by fatal bursting forth (maranaantik samudghaat) or even otherwise ?
[Ans.] Gautam! Their death caused by fatal bursting-forth (maranaantik samudghaat) and otherwise also.
४४ [ प्र. ] ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जंति ? किं नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति० ?
[3. ] एवं जहा वक्कंतीए उव्वट्टणाए वणस्सइकाइयाणं तहा भाणियवं । [ दारं ३१] ४४ [प्र.] भगवन्! वे उत्पल के जीव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? अथवा मनुष्यों में या देवों उत्पन्न होते हैं?
[उ.] गौतम! (उत्पल के जीवों की अनन्तर उत्पत्ति के विषय में ) प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिक पद के उद्वर्त्तना - प्रकरण में वनस्पतिकाय जीवों के वर्णित वर्णन के अनुसार कहना चाहिए ।
[ - तीसवाँ इकतीसवाँ द्वार ]
44. [Q.] Bhante ! Immediately after their death where do those
living beings in Utpal go and where are they reborn? Are they born among infernal beings or animals? Or, are they born among human beings or divine beings?
[Ans.] Gautam! The details about rebirth of living beings in Utpal are as mentioned about plant-bodied beings in the Udvartana lesson of the sixth chapter, titled Vyutkrantik of Prajanapana Sutra.
विवेचन - उत्पल के जीव नियमतः छह दिशा से आहार क्यों ग्रहण करते हैं? – पृथ्वीकायिक
[- the thirty-first theme]
आदि जीव सूक्ष्म होने से निष्कुटों (लोक के अन्तिम कोणों) तक उत्पन्न हो सकते हैं, इसलिए वे कदाचित्
तीन, चार या पाँच दिशाओं से आहार लेते हैं तथा निर्व्याघात की अपेक्षा से छहों दिशाओं से आहार लेते हैं।
किन्तु उत्पल के जीव बादर होने से वे निष्कुटों में उत्पन्न नहीं होते, अतः वे नियम से छहों दिशाओं से आहार लेते हैं। (भगवती, अ. वृत्ति, पत्र ५१३ )
उत्पल के जीव वहाँ से मर कर तुरन्त तिर्यञ्चगति या मनुष्यगति में जन्म लेते हैं, देवगति या नरकगति में उत्पन्न नहीं होते। (वही, पत्र ५१३ )
Elaboration-Food intake from all six directions-Earth-bodied and other such beings are minute and as such they get born even at the edges of the Lok (occupied space); therefore they have possibility of food
भगवती सूत्र (४)
(98)
Bhagavati Sutra (4)
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