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ಮಣಿಶಂಜಳಜಳಜಳkಳಜಗಳಗಳಣಿಜ
polesalesakaleshe stealistadtake akshakakakakalasheshsakeshsakskskskskskskskskskskskskskskskskskskelete
है, तिर्यक्-पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं में जाने का जितना परिमाण किया है-उक्त । तीनों (छहों) परिमित दिशाओं में अपनी इच्छा से सशरीर बाहर जाकर दो करण, तीन योग से अर्थात् मन, वचन एवं काय से स्वयं आस्रव सेवन का तथा दूसरों को आस्रव सेवन के लिए प्रेरित करने का त्याग करता हूं। छठे दिशाव्रत के पांच अतिचार हैं जिन्हें जानना तो चाहिए परन्तु उनका सेवन नहीं करना चाहिए। पांच अतिचारों का स्वरूप इस प्रकार है-(1) ऊर्ध्व दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, (2) अधोदिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, (3) तिर्यक् दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, (4) क्षेत्र-वृद्धि की हो, एवं (5) संदेह होने पर भी आगे गमन किया हो। दिवस संबंधी उक्त अतिचारों से यदि मेरा व्रत दूषित हुआ है तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो।
Exposition: I condemn myself for any deviation in practicing this sixth vow of limit to travel in different directions. I have fixed a limit of movement in upward direction, movement in downward direction movement towards north, south, east and west. I make a resolve that in three ways - mentally, orally and physically and in two forms namely moving myself or in sending others, I shall not cross such limits.
There are five deviations (atichars) that may happen in practicing this vow. One should know them but should not practice them. They are as follows :- (1) To cross the limit fixed for movement in upward direction. (2) To cross the limit fixed for movement in downward direction. (3) To cross the limit for movement in the same plane. (4) To increase the limit already fixed (5) To have a doubt whether the limit has been crossed, yet to move ahead. In case during the day, I may have crossed any limit and thus deviated in practicing the vow, I feel sorry for the same and undertake self-criticism. May my fault be condoned.
. विवेचन : सत्र में पढे गए 'सइच्छाए' शब्द का अर्थ है-अपनी इच्छा से। अर्थात् इच्छा पूर्वक जानबूझकर मर्यादित क्षेत्र से बाहर जाने का त्याग करता हूं। इसमें राजा की आज्ञा से, देव योग से अर्थात् ट्रेन आदि में नींद आ जाने से यदि क्षेत्र की उल्लंघना हो तो व्रत खण्डित नहीं होता। ___क्षेत्र वृद्धि' से तात्पर्य है-यदि चारों दिशाओं में सौ-सौ किलोमीटर तक जाने की मर्यादा की हुई है। कालान्तर में पूर्व दिशा में अधिक दूरी तक जाने का प्रसंग आने पर पश्चिम दिशा का परिमाण कम करके पूर्व दिशा के परिमाण में वृद्धि कर लेना। ऐसा करना दोषप्रद है। इससे श्रावक का ग्रहीत व्रत दूषित हो जाता है।
Caskestradeshaksaskesiskskskskskskele skele sakcskskskeleskskskskeaheshsaksdesdeskskskskskske alske steresdesksksisleakesekseedsister
श्रावक आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. : Pratikraman