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it myself and in three ways namely mentally, orally and physically. In other words while accepting the vow, the limit for various things that I have decided, I shall not cross it. There are five deviations that may occur while practicing this vow. They are as follows:- (1) To cross the limit fixed for possession of open land and building. (2) To cross the limit about possession of gold and silver. (3) To cross the limit about possession of gold and money and food grains. (4) To cross the limit about possession of bipeds (Servants, maids) and quadrupeds (animals). ( 5 ) To cross the limit about possession of other articles of domestic use. In case I may have crossed any such limit, I feel sorry for it and criticize myself. May my fault be condoned.
विवेचन : लाभ लोभ का प्रधान कारण है । जैसे-जैसे लाभ बढ़ता जाता है वैसे-वैसे लोभ बढ़ता जाता है। श्रावक के लिए इस तथ्य को जानकर अपने परिग्रह को नियम के द्वारा परिमित कर लेना आवश्यक होता है । 'स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत' का यही अभिधेय है। मर्यादा-रेखा खींच देने से लोभ पर विजय प्राप्त करना सरल हो जाता है। उससे संतोष वृत्ति का जन्म होता है और संतोष ही सच्चा सुख भी है।
Explanation: Benefit is the primary factor of causing greed. When the gain increases, the greed increases in the same ratio. Knowing this basic fact a Shravak must control his desire for possessions through the Vow of limit to possessions (Pasiggreh). This is the primary purpose of this vow of limiting gross possessions. When a person decides a limit about his possessions, it becomes easy to control the instinct of greed. It gives rise to sense of satisfaction and real happiness lies in satisfaction.
छठा व्रत : दिशा परिमाण
छट्ठू दिशिव्रत - ऊर्ध्वदिशानूं यथा- परिमाण, अधो दिशानूं यथा परिमाण, तिरियदिशानूं यथा- परिमाण, ए यथा- परिमाण कीधूं छे, ते उपरान्त सइच्छाए, कायाए, जइने पंच आस्त्रव सेववाना पच्चक्खाण, जावज्जीवाय दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा । एहवा छट्ठा दिशिव्रतना पंच अइयारा जाणिव्वा न समायरियव्वा; तं जहा ते आलोउं, उड्ढदिसिप्पमाणाइक्कमे अहोदिसिप्पमाणाइक्कमे तिरियदिसिप्पमाणाइक्कमे खित्तवुड्ढी सइअंत्तरद्धा य, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ : दिशा परिमाण नामक सातवें व्रत संबंधी अतिचारों की आलोचना करता हूं। ऊंची दिशा में जाने का जितना परिमाण किया है, नीची दिशा में जहां तक जाने का परिमाण किया चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण
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Shravak Avashyak Sutra