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प्रथम अणुव्रत : स्थूल प्राणातिपात विरमण
पहिला अणुव्रत - थूलाउ पाणाइवायाउ-वेरमणं, तस जीव बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदिय, पंचेंदिय जाणी पीछी संकल्पी, ते मांहि सगा सम्बंधी, शरीर माहिला पीड़ाकारी, सअपराधी, ते उपरान्त निरपराधी, आकुट्टी हणवानी बुद्धि ने हणया का पच्चक्खाण, जावज्जीवाय दुविहं, तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, एहवा पहिला थूल- प्राणातिपात विरमण व्रत ना पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउं 1. बंधे, 2. वहे, 3. छविच्छेए, 4. अइभारे, 5. भत्त - पाण-वोच्छेए, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ : प्रथम अणुव्रत - मैं स्थूल जीवों की हिंसा से पीछे हटता हूं। शरीर में पीड़ा उत्पन्न करने वाले, स्वजन-संबंधियों का अहित करने वाले एवं अपराध करने वाले प्राणियों के सिवाय शेष सभी दो इन्द्रिय वाले, तीन इन्द्रिय वाले, चार इन्द्रिय वाले एवं पांच इन्द्रिय वाले प्राणियों की जान-बूझ कर एवं मारने की बुद्धि से हिंसा करने का त्याग करता हूं। जीवनभर के लिए दो करण, तीन योग से, अर्थात् मन, वचन एवं काय से किसी भी निरपराध त्रस जीव की हत्या न मैं स्वयं करूंगा और न ही किसी से हिंसा कराऊंगा। प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के पांच प्रमुख अतिचार हैं। इन पांच अतिचारों को जानना तो चाहिए परन्तु इनका आचरण नहीं करना चाहिए। पांच अतिचार इस प्रकार हैं - ( 1 ) वध, ( 2 ) बंध (3) अंगोपांग आदि का छेदन करना, (4) अतिभार, एवं (5) भक्त - पान व्यवच्छेद। उक्त पांच अतिचारों में से किसी भी अतिचार का यदि मैंने सेवन किया हो तो उससे मैं पीछे हटता हूं। मेरा वह दुष्कृत दूर हो।
Exposition: First partial Vow: I withdraw myself from violence to gross living beings. I withdraw from causing violence to two sensed, three sensed, four sensed and five sensed living being intentionally and with a desire to kill then except those who have caused pain in my body or who caused damage to my relatives. I for the entire life shall never mentally, orally or physically cause or get caused violence to mobile living beings who have not committed any crime towards me. There are five primary faults that can occur in practice of the resolve. They should properly be understand but should not be committed. They are as follows: – (1) To kill (2) To imprison (3) To cut limbs or sub-limbs of living being (4) To put a load on them more than what they can carry. (5) No to give food and water (or wages) to them at
श्रावक आवश्यक सूत्र
IVth Chp. : Pratikraman
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