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चतुर्थ आवश्यक : प्रतिक्रमण Fourth Aavashyak : Pratikraman
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विधि : 'वन्दन सूत्र' से गुरु महाराज को वन्दन करके प्रतिक्रमण नामक चतुर्थ आवश्यक की आज्ञा लें। उसके बाद कायोत्सर्ग में पढ़े गए 99 अतिचारों के पाठों का उच्चारण करें। तत्पश्चात् दायां घुटना ऊंचा रखके तथा बायां घुटना भूमि पर रखकर 'श्रावक सूत्र' के रूप में क्रमशः 'नमोकार सूत्र', 'सामायिक सूत्र' (करेमि भंते), एवं 'मंगल सूत्र' (चत्तारि मंगल) का उच्चारण करें। उसके बाद ‘इच्छामि ठामि' एवं 'इच्छाकारेण सूत्र' का मनन करके वन्दन सूत्र पढ़ गुरु महाराज को वन्दन करें। फिर ज्ञान के अतिचारों के पाठ (आगमे तिविहे पण्णत्ते) से ज्ञानातिचारों की आलोचना करें। उसके बाद निम्नोक्त पाठ पढ़ें
Procedure: Reciting Vandan Sutra, bow to Guru Ji and seek permission for pratikraman. Thereafter recite all the 99 atichars (likely digressions) loudly which earlier had been mentally gone through. Then keeping the right knee lifted and left knee touching the ground in 'Shravak Sutra' recite 'Nafmokar Mantra' Samayik Sutra (karemi Bhante..) and Mangal Sutra (Chattari Manglam) loudly in this very order. Thereafter mentally he should go through the lesson of 'Ichhami Thami' and ‘Ichha Karen' Sutra and then bow to Maharaj Ji with Vandan Sutra. Thereafter the self-criticism be done about faults in study of Scriptures by reciting the specified lesson of 'Agamey Tivihey Pannattey'. Thereafter the following aphorism should be recited.
Skullukulttukkukukkkkkkkkkkukuuluukkukukukkukukkikulttukkukiuka
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दर्शन (सम्यक्त्व) का पाठ दर्शन-सम्यक्त्व परमत्थ संथवो वा, सुदिट्ठ परमत्थ सेवणावावि, वावण्ण कुदंसण-वज्जणा य एहवी सम्मत्त सद्दहणा; एहवा समणोवासयाणं सम्मत्तस्स पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउं संका, कंक्खा, वितिगिच्छा, परपासंडी-पसंसा, परपासंडी संथवो। एवं पांच अतिचार मध्ये जे कोई अतिचार लागा होय तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। श्रावक आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. : Pratikraman r eeyasagarmagarmagarmagarmagass
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