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षष्ठ व्रत विषयक अतिचार आलोचना छठा दिशि व्रत ने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं, 1. उड्ढ दिसा नो प्रमाण अतिक्रम्या होय, 2. अधो दिशा नो प्रमाण अतिक्रम्या होय, 3. तिरच्छि दिशा नो प्रमाण अतिक्रम्या होय, 4. क्षेत्र वधारया होय, 5. पंथनो संदेह पड्या आगे चाल्या होय, जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
भावार्थ : दिशा-व्रत नामक छठे व्रत के विषय में यदि कोई दोष लगा हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूं। छठे व्रत के पांच अतिचार हैं, यथा-(1) ऊर्ध्व दिशा के परिमाण का उल्लंघन किया हो, (2) अधो (नीची) दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, (3) तिरछी दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, (4) एक दिशा का परिमाण कम करके दूसरी दिशा का क्षेत्र बढ़ाया हो, एवं (5) मर्यादित किए गए क्षेत्र के संबंध में संशय उत्पन्न होने पर भी आगे गमन किया हो, उक्त अतिचारों में से यदि कोई अतिचार लगा हो तो मेरा वह दुष्कृत निष्फल हो।
Exposition: I feel sorry for any fault that I may have committed in practice of sixth vow about limit of movement in various directions. There are five likely digressions that may occur. They are as under:
(1) To cross the limit resolved regarding movement in upward direction (2) to cross limit about movement in lower direction (3) to cross the limit resolved about movement in the same plane (4) to increase the limit resolved in one direction by reducing the limit already decided for other direction (5) to move ahead even when there is doubt in the mind that the limit resolved has already been covered. I feel sorry for all such faults. My faults may be condoned.
सप्तम व्रत विषयक अतिचार आलोचना सातमा उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत ने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं 1. पच्चक्खाण उपरान्त सचित्त का आहार करया होय, 2. सचित्त पडिबद्ध का आहार करया हो, 3. अपक्व ना आहार करया हो, 4. दुष्पक्व ना आहार करया होय, तुच्छौषधि ना आहार करया होय, जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि
दुक्कडं। ___पनरा कर्मादान के विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं- 1. इंगालकम्मे, 2. वणकम्मे, 3. साडीकम्मे, 4. भाडीकम्मे, 5. फोडीकम्मे, 6. दंतवणिज्जे, 7. लक्ख
Sesluiululululululululululuk kullukulukuulutulekuulutuskulutukutukulukuukukulukulukuuluukulluukki
श्रावक आवश्यक सूत्र
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Ist Chp.:Samayik
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