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________________ pokestaskesekskskeleake ake akeshe sakeseksisakesleakeseaksiesdealsksksksksksksksksksksksksdesdeskskskskage ___6. प्रत्याख्यान-यह आवश्यक का छठा और अन्तिम सोपान है। यह अन्तिम है इसलिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भी है। इस आवश्यक के द्वारा साधक विशिष्ट त्याग-प्रत्याख्यान अंगीकार करके आत्मा पर जमी कर्मों की धूल को दूर करता है। अपने सामर्थ्य को तोल कर साधक तदनुरूप स्वेच्छिक तप को अंगीकार करता है। तप निर्जरा का प्रधान हेतु है। प्रत्याख्यान द्वारा साधक निर्जरा के पथ पर चरणन्यास करता है और उत्कृष्ट कर्मों की निर्जरा द्वारा अपनी आत्मा को हल्का करता है। जिस प्रकार अपने पंखों को फड़फड़ा कर पक्षी उन पर जमी धूल को झाड़ लेता है वैसे ही साधक गृहीत व्रतों पर जमी दोषों की धूल को प्रतिक्रमणीय परिस्पंदना द्वारा झाड़ कर भार-रहित हो जाता है। वैसा करने से उसके लिए अध्यात्म के अनन्त आकाश में ऊँची उड़ान भरना सरल हो जाता है। दोषों की धूल के भार के साथ अध्यात्म के आकाश में ऊँची उड़ान संभव नहीं है। इसीलिए महापुरुषों ने आवश्यक का विधान किया है। प्रत्येक जिनोपासक के लिए यह जरूरी है कि वह आवश्यक-आराधना द्वारा प्रतिदिन "निशान्त और दिवसान्त"-इन दोनों संध्याओं में स्वयं का आलेखन-प्रतिलेखन करे। स्वयं का अवलोकन करे। आत्म-आलोचना करे। ऐसा करने से उसकी आत्मा शुद्ध और निर्मल हो जाती है। उसका ज्ञान-दर्शन एवं आनन्द स्वरूप प्रकट हो जाता है। ऐसा होना ही साधना का सुफल है। सिद्धि के अन्तिम सोपान पर साधक का चरणन्यास है। साधुवाद/कृतज्ञता ___ सचित्र आगम प्रकाशन की इस मंगलमयी यात्रा में अनेक सहयोगियों का समर्पित सहयोग रहा है। सर्वप्रथम तो अपने श्रद्धेय गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्री पद्मचन्द्र जी म. “भण्डारी" को कृतज्ञता पूर्वक स्मरण करना चाहता हूँ जिन्होंने आगम के इस स्वरूप की परिकल्पना की एवं इस दिशा में कदम बढ़ाने हेतु मुझे प्रेरित किया। स्वर्गीय श्री श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' ने मेरी इस यात्रा में अपना भरपूर सहयोग दिया। सुराणा जी की आगमीय-आस्था सच में आस्था का विषय है। अपने जीवनकाल में उन्होंने जो साहित्य-साधना की वह ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सदैव याद की जाएगी। ___अंग्रेजी अनुवाद में श्री राजकुमार जैन ने अपनी आस्था को प्रमुदित किया है। अतीत में भी इस दिशा में वे कार्य कर चुके हैं। कई आगमों का उन्होंने सफलता पूर्वक अंग्रेजी अनुवाद किया है। नि:स्वार्थ भाव से श्रुत प्रभावना का उनका यह कार्य सदैव स्मरणीय रहेगा। pyaksksksksksksksksksksksdesksdecadesaksesaksksksksksksksksksrte kadakestalesalesdeskakisakestalesaleeleekersdesktakestrokestra // xiv // deodesdeskete नाpraapa a garats
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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