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प्रस्तुत सूत्र के हिन्दी अनुवाद से लेकर मुद्रण तक में विनोद शर्मा (कोमल प्रकाशन) का सहयोग भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। संकेत मात्र से उन्होंने इस वृहद् कार्य को अपने हाथों में लिया और सफलता पूर्वक पूरा भी किया। तदर्थ साधुवाद!
और अन्त में मुनिवर वरुण को आशीष देना चाहूँगा जिन्होंने सम्पादन से लेकर प्रकाशन तक के प्रत्येक कार्य में पूरी रुचि लेते हुए इस श्रुतयज्ञ की सम्पन्नता में महत्वपूर्ण कार्य किया। मुनिवर की देव, गुरु, धर्म और श्रुत के प्रति अनन्य आस्था सच में मन को मुदित करने वाली है। इनके स्वर्णिम-स्वर्णिम भविष्य के लिए शत-शत सदाकांक्षाएं। ___ आशा है साधारण पाठक वर्ग एवं साधक वर्ग इस आगम के स्वाध्याय के माध्यम से अपने स्वाध्याय और साधना को और आगे बढ़ाएगा। इसी में इस श्रुत-यज्ञ की सफलता भी निहीत है।
-प्रवर्तक अमर मुनि
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