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पंचाचार का उपदेश-अनुशासन प्रदान करने वाले को आचार्य कहा जाता है। आचार्य की आज्ञाओं की अवहेलना करना, उनके अनुशासन को अस्वीकार करना आदि आचार्यों की आशातना है ।
(4) उपाध्यायों की आशातना - संघ में ज्ञान - दान का प्रभार उपाध्याय के स्कन्धों पर होता है। उपाध्याय द्वारा प्रदत्त वाचनाओं में दोष निकालना, उनका समुचित सत्कार न करना, उन्हें अल्पश्रुत कहना, आदि उपाध्यायों की आशातना है ।
(5) साधुओं की आशातना-संयमी साधुओं को ढ़ोगी कहना, उनके आचार का उपहा करना आदि, साधुओं की आशातना है ।
(6) साध्वियों की आशातना - साध्वियों का सम्मान न करना, स्त्री होने के कारण उन्हें कलह-क्लेश का मूल मानना, स्त्रियां सर्वविरति नहीं हो सकती, उन्हें मोक्ष नहीं हो सकता, इत्यादि अनर्गल बातें कहना साध्वियों का अपमान है।
(7-8) श्रावकों -श्राविकाओं की आशातना - साधु-साध्वियों की भांति श्रावक-श्राविकाएं भी तीर्थ हैं। साधु-साध्वियों के लिए उन्हें 'अम्मा- पियरो' कहा गया है। साधना - पथ पर चलते हुए श्रावक-श्राविकाएं भी सिद्धि का वरण करते हैं। श्रावकों-श्राविकाओं के प्रति ऐसा कहना कि- कोई गृहस्थ व्रतों का पालन नहीं कर सकता, गृहस्थ के लिए मोक्ष असंभव है आदि, तथा श्रावक-धर्म को पाखण्ड बताना, श्रावकों को अपमानित करना, आदि श्रावकों-श्राविकाओं आशाता है।
(9) देवताओं की आशातना - देवों और देवलोकों के अस्तित्व को कपोल-कल्पना कहना, देवों की ऋद्धि को नकारना आदि देवों की आशातना है ।
(10) देवियों की आशातना - देवों की तरह ही देवियों के बार में भी चिंतन - कथन करना, देवियों की आशातना है ।
(11) इहलोक आशातना - इहलोक के संबंध में शास्त्रोक्त सिद्धांतों को नकारना, ब्रह्म अथवा अण्डे से उसकी उत्पत्ति मानना, इहलोक आशातना है।
(12) परलोक आशातना - मनुष्य की अपेक्षा से मनुष्यगति इहलोक है, देव गति, नरक गति एवं तिर्यंच गति - परलोक हैं। इहलोक को ही सत्य मानना, देव आदि गतियों के अस्तित्व को नहीं मानना, पूर्वजन्म - पुनर्जन्म को कपोल-कल्पनाएं कहना, 'परलोक आशातना' है।
(13) केवलि - प्ररूपित धर्म की आशातना - केवली भगवान् द्वारा प्ररूपित सिद्धांतों को न मानना, उनका उपहास करना 'केवलि - प्ररूपित धर्म की आशातना है।
आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. : Pratikraman