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________________ (21) आत्मदोषोपसंहार - अपने दोषों का उपसंहार करना । ( 22 ) सर्वकाम विरक्तता - काम-भोगों से विरक्त होना । (23) प्रत्याख्यान-मूल गुणों की शुद्ध आराधना करना । (24) प्रत्याख्यान - न - उत्तरगुणों की शुद्ध आराधना करना । (25) व्युत्सर्ग- शारीरिक ममता का त्याग करना। (26) अप्रमाद - प्रमाद नहीं करना । (27) लवालव-समाचारी के पालन में सतत सावधान रहना। (28) ध्यान संवरयोग - धर्म - शुक्ल रूप शुभ ध्यानों की आराधना करना । (29) उदए मारणन्तिए - मारणान्तिक कष्ट के समय भी अधीर न होना । (30) संग - त्याग-संग का त्याग करना । (31) प्रायश्चित्त करण-दोषों की निवृत्ति के लिए प्रायश्चित्त लेना । (32) आराहणा य मरणंते- शारीरिक और काषायिक क्षीणता के लिए संलेखना करना । उपरोक्त 32 योग संग्रहों की समुचित आराधना न की हो, उससे उत्पन्न दोष की निवृत्ति 'योग संग्रह प्रतिक्रमण' के द्वारा की जाती है। आशातना प्रतिक्रमण: सम्यग्दर्शन आदि मोक्ष के साधनों को जो नष्ट करे उसे आशातना कहते हैं। श्रेष्ठ आत्माओं, सर्वज्ञ प्रणीत सिद्धांतों आदि की आशातना से जीव क्लिष्ट कर्मों का संचय कर लेता है। फलस्वरूप सद्गुणों से पतित होकर वह अनन्त संसार सागर में डूब है। आशातना के तैंतीस भेद इस प्रकार हैं (1) अरिहंतों की आशातना - कर्म रूपी शत्रुओं का हनन करने वाले अरिहंत कहलाते हैं। आत्मकल्याण का अनुष्ठान संपन्न कर अरिहंत देव विश्वकल्याण के लिए धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हैं। संसार-वन में भटक रहे भव्य जीवों को अरिहंत सन्मार्ग / मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं। इसलिए अरिहंत देव अनन्त उपकारी हैं । ऐसे अनन्त उपकारी अरिहंतों की सर्वज्ञता में संदेह करना, उन द्वारा प्ररूपित सिद्धांतों में दोष निकालना, उनके चौंतीस अतिशयों और पैंतीस वचनातिशयों को कपोल-कल्पित बताना, अरिहंतों की आशातना है । - (2) सिद्धों की आशातना - अष्ट कर्मों से विमुक्त, लोकाग्र में स्थित अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख सम्पन्न आत्माएं सिद्ध कहलाती हैं। सिद्धों के अस्तित्व को नकारना, 'शरीर के अभाव में सुख कैसा' ऐसा सोचना एवं कहना, सिद्धों की आशातना है। (3) आचार्यों की आशातना - पंचाचार का स्वयं पालन करने वाले एवं चतुर्विध संघ को चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण Avashyak Sutra // 116 //
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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