SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरिहंतों की आशातना उपाध्यायों की आशातना RPAKKING 7 श्रावकों की आशातना स्वर्ग जाता 12 बांधने से कोई ह स्वर्ग जाते। परलोक आशातना DURA ये कैसे अरिहंत हैं जो सोने के सिहांसन पर बैठते हैं? ये क्या पढ़ाएंगे, इन्हें स्वयं कुछ नहीं आता है। तैंतीस आशातना सूत्र कौन जानता है परलोक है (भी या नहीं/ सिद्धों की आशातना साधुओं की आशातना श्राविकाओं की आशालना 8 देवों की आशालना (9) सिद्धालय में क्या सुख होगा? पेट भरने के लिए इन्होंने यह केवलि प्ररूपित धर्म की आशातना R इनका कहना है कि जीव एक समय एक ही क्रिया करता है लेकिन और सूर्य की उत का एक ही समय में वेदन कर रहा हूँ। - 1 (10) देवियों की आशालना चित्र संख्या 12 0 5 देव-देवियों का नहीं है, ये सब 13 आचार्यों की आशातना साध्वियों की आशातना स्त्रियां तो क्लेश की जड़ होती है, ये साध्वियां कैसे हो सकती है? तुम क्या समझते हो, मैं स्वयं जानता हूँ। इहलोक आशातना स्वर्ग-नरक कहीं नहीं हैं, इसलिए खाओ-पीओ आनंद मनाओ। देव-मनुष्य-असुरलोक आशातना वाह! 'देव-असुर आदि की क्या विचित्र धारणाएं। है जिने की
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy