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________________ pekcakeslesiaste salese slkalasalasalkesaksesortaliacolasalsaksesleakisalaalsakesiskskskskskskskssessleseseksee sessessege (साधु के लिए बनाया हुआ आहार) ग्रहण करना, (5) राजपिण्ड (राजाओं के लिए बनाया हुआ बलवर्द्धक आहार) का उपभोग करना, (6) औद्देशिक (साधु के उद्देश्य से बनाया । हुआ, खरीदा हुआ, उधार लेकर बनाया हुआ, निर्बल से छीना हुआ, अथवा उपाश्रय में लाकर दिया हुआ) आहार ग्रहण करना, (7) ग्रहण किए हुए प्रत्याख्यान को पुनः पुनः भंग करना, (8) छह मास की अवधि में गण बदल लेना, (9) एक महीने में तीन बार नदी पार करना, (10) एक महीने में तीन बार माया-छल-कपट करना, (11) शय्यातर (जिसके घर में अथवा जिसकी आज्ञा लेकर उपाश्रय आदि में निवास किया है) के घर से भिक्षा लेना, (12) जानकर-समझकर हिंसा करना, (13) जानकर-समझकर झूठ बोलना, (14) जानकर-समझकर चोरी करना, (15) जानकर-समझकर सचित्त पृथ्वी या शिला पर बैठना, (16) सचित्त पीठ-फलक आदि पर बैठना या कायोत्सर्ग करना, (17) जानते-समझते हुए कन्द, मूल, फूल, बीज आदि का आहार करना, (18) एक वर्ष में दस बार नदी पार करना, (19) एक वर्ष में दस बाद छल-कपट करना, (20) जानते हुए-समझते हुए भी सचित्त जल से लिप्त हाथ, कड़छी या कटोरी से आहार लेना, (21) जानबूझ कर सचित्त पृथ्वी, बीज, हरित, कीड़ियों के बिल, मकड़ी के जाले, नीलन-फूलन वाले स्थान पर बैठना या कायोत्सर्ग करना। उपरोक्त 21 दोषों के सेवन से साधु का संयम चितकबरा अथवा बदरंग हो जाता है। इन दोषों के सेवन की कल्पना से भी साधु को सावधान रहना चाहिए। साधना में संपूर्ण सावधानी हेतु ही साधु शबलदोष प्रतिक्रमण करता है। परीषह प्रतिक्रमण : साधना-मार्ग में उपस्थित होने वाली बाधाओं को परीषह कहा जाता है। साधु का एकमात्र लक्ष्य मोक्ष-पथ पर आगे बढ़ना होता है। स्वभावतः मानव का मन सुख-प्रिय होता है। परन्तु सुख-प्रियता साधना-मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। वहां तो कदम-कदम पर कष्टों को समताभाव से गले लगाना होता है। साधना-मार्ग में उपस्थित होने वाली ऐसी बाधाओं को 22 बोलों में संग्रहीत किया गया है। वे बावीस बोल/परीषह इस प्रकार हैं (1) भूख, (2) प्यास, (3) सर्दी, (4) गर्मी, (5) दंशमशक (डांस-मच्छरों द्वारा काटा जाना), (6) अचेल (वस्त्रों के न मिलने पर होने वाला कष्ट), (7.) अरति (कष्टों से पीड़ित होकर संयम के प्रति होने वाली उदासीनता), (8) स्त्री, (9) चर्या (विहार आदि में गमन संबंधी कष्ट), (10) नैषेधिकी (स्वाध्याय भूमि में उपस्थित होने वाले कष्ट), (11) शय्या - (अनुकूल उपाश्रय न मिलने पर होने वाला कष्ट), (12) आक्रोश (किसी द्वारा क्रोध किए जाने पर उत्पन्न होने वाला मानसिक खेद), (13) वध (मिथ्यात्वियों द्वारा साधु को मारना alesalkele skelesalesaksksksdesheadsheshesteadedasheskskskskedashe skelesslesaleshe strekeksiskelele streakisakeshe sksksksketroleup चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण // 108 // Avashyak Sutra a ssagappasapaparmanaspappuppsapgargappapeparpgappearapagapprospergapppras
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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