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(13) मण्डूक, (14) तेतली, ( 15 ) नन्दीफल, ( 16 ) अमरकंका, ( 17 ) आकीर्ण, (18) सुषमा, (19) पुण्डरीक ।
इन उन्नीस अध्ययनों में दृष्टान्तों के माध्यम से संयम में प्रवृत्ति एवं असंयम से निवृत्ति का व्याख्यान हुआ है। उक्त व्याख्यान के अनुसार संयम में प्रवृत्ति और असंयम से निवृत्ति न की हो, अथवा आगम-कथित सिद्धान्तों की विपरीत प्ररूपणा की हो तो उससे उत्पन्न दोष से प्रतिक्रमण करता हूं। यही ज्ञाताध्ययन प्रतिक्रमण का आशय है।
असमाधि स्थान प्रतिक्रमण : समताभाव में चित्त की स्थिरता को समाधि कहा जाता है। जिस आचार, विचार और वाग् व्यवहार से समाधिभाव खण्डित हो उसे असमाधि-स्थान कहा जाता है। असमाधि उत्पन्न करने वाले ऐसे स्थानों / कारणों की संख्या बीस है। बीस असमाधिस्थानों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
(1) अविवेक पूर्वक जल्दी-जल्दी चलना, (2) रात्रि में बिना प्रमार्जन किए गमन करना, (3) बिना उपयोग (तन - मन की एकाग्रता ) के प्रमार्जन करना, (4) शास्त्रोक्त मर्यादा से अधिक `शय्या-आसन रखना, (5) गुरुओं- पूज्यजनों का अनादर करना, (6) स्थविरों को अपमानित करना, (7) जीवों की घात करना अथवा वैसा विचार करना, (8) बार-बार क्रोध करना, (9) सुदीर्घकाल तक क्रोध को शान्त न करना, (10) पीठ पीछे दूसरों की निन्दा - चुगली करना, (11) शंका-स्पद विषयों में पुनः पुनः निश्चयात्मक भाषा बोलना, ( 12 ) प्रतिदिन क्लेश करना, (13) जिन भूलों-अप्राधों के लिए परस्पर क्षमापना कर ली गई है, पुनः उन भूलों को दोहराकर क्लेश को उत्पन्न करना, (14) अकाल में स्वाध्याय करना, (15) सचित्त रज लिप्त हाथों से आहार करना अथवा सचित्त रज से लिप्त पांवों सहित आसन- शय्या पर उठना-बैठना, (16) प्रहर रात्रि व्यतीत होने पर ऊंचे स्वर से बोलना, ( 17 ) गच्छ फूट डालना, (18) दुर्वचनों से गण को दुख पहुंचाना, ( 19 ) दिन भर खाते-पीते रहना, एवं (20) साधु के लिए अकल्पनीय / अनेषणीय आहार- पानी का उपभोग करना ।
उपरोक्त 20 असमाधि - स्थानों का प्रमादवश सेवन किया हो तो उससे उत्पन्न दोषों की निवृत्ति के लिए प्रतिक्रमण करता हूं।
शबलदोष प्रतिक्रमण : साधु के लिए सर्वथा त्याज्य दोषों को शबल दोषों में परिगणित किया गया है। शबल दोषों के सेवन से साधु का चारित्र मलिन होकर नष्ट हो जाता है। शबल दोषों का क्रमिक विवरण इस प्रकार है
(1) हस्त-कर्म करना, (2) मैथुन सेवन करना, (3) रात्रि - भोजन करना, (4) आधाकर्मी
आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. : Pratikraman