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________________ ಕಳಕಳಕಳಳಕಗಳಗಳನೆಣಿಗಳಣಿಕಣಿಣಿಗಡ್ಡಿ Releaslele sleakshe slesleakslasheslesalesalese slessleshsalkelesslesslesalesdesicole skeslesalesesale skelesolesalesalesale skelesslege ___ (10) मित्र क्रिया-स्नेही जनों/मित्रों को दण्डित करना। (11) माया क्रिया-छल-कपट करना। (12) लोभ क्रिया-लोभ करना। (13) ऐर्यापथिकी क्रिया-सयोगी केवली को गमनागमन के निमित्त से लगने वाली सूक्ष्म क्रिया। ____ भूतग्राम प्रतिक्रमण : भूत का अर्थ है-जीव और ग्राम का अर्थ है-समूह। जीवों का जघन्य एक भेद-चेतना लक्षण है। मध्यम चौदह भेद एवं उत्कृष्ट पांच सौ तिरेसठ भेद हैं। यहां समूह दृष्टि से प्रतिपादित जीव के मध्यम चौदह भेदों के संबंध में श्रद्धा, प्ररूपणा में यदि दोष उत्पन्न हुआ है अथवा इन जीवों में से किसी जीव की विराधना हुई है तो भूतग्राम प्रतिक्रमण द्वारा आत्मशुद्धि की गई है। चौदह भूतग्रामों/जीव-समूहों की गणना इस प्रकार है__ (1) सूक्ष्म एकेन्द्रिय, (2) बादर एकेन्द्रिय, (3) द्वीन्द्रिय, (4) त्रीन्द्रिय (5) चतुरिन्द्रिय, (6) असंज्ञी पंचेन्द्रिय एवं, (7) संज्ञी पंचेन्द्रिय। इन सातों के पर्याप्त एवं अपर्याप्त, ऐसे कुल चौदह भेद होते हैं। .. परमाधार्मिक प्रतिक्रमण : परम+अधार्मिक = अत्यन्त पापी। अथवा अधर्म प्रधान कार्यों में विशेष रुचि रखने वाले। असुरकुमार देवों की एक विशेष जाति के देव 'परमाधार्मिक' कहलाते हैं। वे देव स्वभाव से ही अत्यन्त क्रूर और दूसरों को दुख देकर प्रसन्न होने वाले होते हैं। वे प्रथम, द्वितीय और तृतीय नरक के नारकों को विविध उग्र प्रयोगों-साधकों से मारते-काटते रहते हैं। नारकों का क्रन्दन उन्हें विशेष प्रसन्नता देता है। वे देव 15 प्रकार के हैं। उनकी नामावली इस प्रकार है (1) अम्ब, (2) अम्बरीष, (3) श्याम, (4) शबल, (5) रौद्र, (6) उपरौद्र, (7) काल, (8) महाकाल, (9) असिपत्र, (10) धनुःपत्र, (11) कुंभ, (12) बालुक, (13) वैतरणी, (14) खरस्वर, एवं (15) महाघोष। इन 15 प्रकार के परमाधार्मिक देवों के शास्त्रोक्त स्वरूप में शंका करना, अथवा इन जैसा उग्र आचरण या विचार करना पापोत्पादक है। कदाचित् ऐसा होता है तो साधु प्रतिक्रमण द्वारा उस दोष की शुद्धि कर लेता है। गाथा षोडषक प्रतिक्रमण : सूत्रकृताङ्ग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययनों में कथित श्रमणाचार के विपरीत आचरण एवं विपरीत श्रद्धा-प्ररूपणा से उत्पन्न दोषों को 'गाथा // 105 // आवश्यक सूत्र enews# gg IVth Chp.:Pratikraman e sଲେଖି
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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