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________________ posekesale sle skesakceke sakesekskske alkesakesalelesdeshe skaslesha skesle alskskskskskskeskskskskskskskesicsaksieskesiskeres ग्यारहवीं प्रतिमा-एक दिन-रात इस प्रतिमा का कालमान है। चौविहार बेले की आराधना इस प्रतिमा की पूर्वभूमिका है। गांव के बाहर ध्यान मुद्रा में स्थिरतापूर्वक इसे सम्पन्न किया जाता बारहवीं प्रतिमा-यह प्रतिमा एक रात्रि की है। चौविहार तेले की तपस्या के साथ इसकी आराधना की जाती है। गांव के बाहर निर्जन स्थान में दोनों पांवों को संकोच कर, हाथों को घुटनों की ओर फैलाकर, मस्तक को किंचित् झुकाकर, एक पुद्गल पर दृष्टि को अपलक स्थिर रखते हुए ध्यान किया जाता है। इस प्रतिमा में प्रायः देव, मनुष्य अथवा तिर्यंच का उपसर्ग उपस्थित होता है। साधक यदि उपस्थित उपसर्ग का समताभाव से सामना करते हुए प्रतिमा को सम्पन्न करता है तो उसे अवधि, मनःपर्यव अथवा कैवल्य-इन तीनों में से किसी एक ज्ञान की अवश्य उपलब्धि होती है। साधक यदि चलायमान हो जाए तो वह पागल हो जाता है तथा केवलि-प्ररूपित धर्म से भी भ्रष्ट हो जाता है। क्रिया-स्थान प्रतिक्रमणः क्रिया का अर्थ है कार्य। क्रिया दो प्रकार से की जाती है-ज्ञानपूर्वक और अज्ञानपूर्वक। ज्ञानपूर्वक की जाने वाली क्रिया कर्मों से मुक्ति में सहायक से होती है जबकि अज्ञानपूर्वक की जाने वाली क्रिया कर्मबन्ध का कारण बनती है। प्रस्तुत प्रकरण में कर्मबन्धन में हेतुभूत तेरह क्रिया स्थानों का ग्रहण किया गया है। तेरह क्रिया स्थानों का स्वरूप निम्नरूपेण है - (1) अर्थदण्ड क्रिया-अर्थ अर्थात् स्वयं के किसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए जीवों की हिंसा करना, कराना और उसका अनुमोदन करना। __ (2) अनर्थदण्ड क्रिया-बिना किसी प्रयोजन के ही जीवों की हिंसा करना। (3) हिंसा-दण्ड क्रिया-इस आशंका से किसी प्राणी की हिंसा करना कि वह मुझे अथवा मेरे प्रियजनों को कष्ट उत्पन्न करेगा। (4) अकस्माद् दण्ड क्रिया-अचानक हो जाने वाली हिंसा। (5) दृष्टि विपर्यास क्रिया-दृष्टि-भ्रम से होने वाली हिंसा। यथा-अनपराधी व्यक्ति को चोर समझकर दण्ड दे देना। (6) मृषा क्रिया-असत्य बोलना। (7) अदत्तादान क्रिया-चोरी करना। (8) अध्यात्म क्रिया-अशुभ मानसिक संकल्पों/दुर्भावों से उत्पन्न होने वाला पापकर्म। (9) मान क्रिया-अभिमान करना। चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण // 104 // Avashyak Sutra
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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