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भिक्षाविधि द्वारा पूर्ण करता है। स्मरण रहे भिक्षाजीवी होते हुए भी श्रमण भिखारी नहीं होता। भिखारी की भिक्षावृत्ति में नियमोपनियमों एवं संतोष के लिए कोई स्थान नहीं होता, वह दीनतापूर्वक गृहस्थों से याचना करता है। इच्छित वस्तु का लाभ होने पर वह दाता की प्रशंसा,
और लाभ न होने पर दाता की निन्दा करता है। इसके विपरीत श्रमण की भिक्षाविधि 42 नियमों/मर्यादाओं से सुरक्षित होती है। श्रमण भिक्षा का योग मिलने पर प्रसन्न नहीं होता, योग न मिलने पर निराश नहीं होता। भावपूर्वक भिक्षा देने वाले की वह प्रशंसा नहीं करता और दुत्कारने वाले दाता की निन्दा भी नहीं करता। इस प्रकार भिक्षु भिक्षाजीवी होकर भी भिखारी नहीं होता
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यहां भिक्षु की 12 प्रतिमाओं का प्रतिक्रमण किया गया है। प्रतिक्रमण से तात्पर्य है-यदि * उक्त प्रतिमाओं का मैंने यथाशक्ति आचरण न किया हो, यथारूप श्रद्धा-प्ररूपणा न की हो
तो मेरा वह प्रमादजन्य दोष निष्फल हो. उस दोष से मैं पीछे लौटता हूं। बारह प्रतिमाओं का स्वरूप इस प्रकार है___पहली प्रतिमा-इस प्रतिमा की अवधि एक मास की है। इस प्रतिमा का धारक भिक्षु प्रतिदिन एक दत्ति अन्न एवं एक दत्ति जल ग्रहण करता है। दत्ति का अर्थ है-दाता द्वारा साधु के पात्र में बहराए जाते हुए पदार्थ की धारा जब तक अखण्ड रहे उसे एक दत्ति कहा जाता है। निरन्तर एक मास तक भिक्षु एक दत्ति अन्न एवं एक दत्ति जल से जीवन-निर्वाह करता है।
दूसरी से सातवीं प्रतिमा-प्रथम प्रतिमा की भांति दूसरी से सातवीं प्रतिमा तक, सभी का कालमान एक-एक मास का है। इनमें विशेषता इतनी है कि दूसरी प्रतिमा में अन्न-जल की दो-दो दत्तियां ली जाती हैं। तीसरी प्रतिमा में तीन-तीन दत्तियां, इसी क्रम से सातवीं प्रतिमा में अन्न-जल की सात-सात दत्तियां ली जाती हैं। . आठवीं प्रतिमा-इस प्रतिमा का कालमान सात दिन-रात का है। इसकी आराधना एकान्तर उपवास के साथ की जाती है। गांव के बाहर उत्तानासन, पार्वासन अथवा निषद्यासन पूर्वक ध्यान किया जाता है तथा उपसर्गों-परीषहों को समभाव से सहन किया जाता है।
नौवीं प्रतिमा-यह प्रतिमा भी सात अहोरात्रि की है। बेले-बेले की तपस्या करते हुए ग्राम के बाहर दण्डासन, लगंडासन अथवा उत्कटुकासन पूर्वक ध्यान किया जाता है।
दसवीं प्रतिमा-इस प्रतिमा की अवधि भी सात अहोरात्रि की है। साधक तेले-तेले का पारणा करते हुए ग्राम के बाहर गोदुहिकासन, वीरासन अथवा आम्रकुब्जासन में स्थित रहकर ध्यान करता है।
किया जाता ह।
आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. :Pratikraman