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________________ संकमणे, जे मे जीवा विराहिया एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया, अभिया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ - ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं । (सूचना : आलोचना सूत्र एवं ईर्यापथ सूत्र का भावार्थ सामायिक आवश्यक में देखें।) (Exposition of these Sutra may be seen in Samayik Avashayak.) शयन संबंधी अतिचारों की आलोचना शय्यासूत्र इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए, निगामसिज्जाए, संथारा उवट्टणाए, परियट्टणाए, आउट्टणाए, पसारणाए, छप्पई-संघट्टणाए, कूइए, कक्कराइए, छीइए, जंभाइए, आमोसे, ससरक्खामोसे, आउलमाउलाए, सोअणवत्तियाए, इत्थीविप्परियासियाए, दिट्ठिविप्परियासियाए, मणविप्परियासियाए, पाणभोयणविप्परियासियाए, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं । भावार्थ : मैं शयन-संबंधी अतिचारों के निवारण के लिए प्रतिक्रमण करना चाहता हूं। यदि मैं नियम-विरुद्ध काल तक सोता रहा हूं, पुनः पुनः बहुत काल तक सोता रहा हूं, अयतना से करवट बदली हो अथवा पुनः पुनः करवट बदली हो, अयतना से हाथ-पैर आदि अंगों को समेटा या फैलाया हो, कठोर स्पर्श से यूका (जूं) आदि जीवों को कष्ट पहुंचाया हो, अतना से खांसी आदि की हो अथवा जोर से शब्द किया हो, शय्या के गुण-दोष बखाने हों, अयतना से छींक ली हो, अयतना से उबासी ली हो, अयतना से शरीर को खुजलाया हो, सचित्त धूल से युक्त वस्त्रों को छुआ हो, स्वप्न में विवाह - युद्ध आदि के दृश्यों को देखने से आकुलता-व्याकुलता रही हो, स्वप्न में स्त्री आदि के प्रति आसक्ति उत्पन्न हुई हो, स्वप्न में दृष्टि राग-रञ्जित हुई हो, मन में विकार भाव उत्पन्न हुआ हो, स्वप्न में भोजन - पानी संबंधी संयम विरुद्ध भाव आए हों, इस प्रकार मेरे द्वारा दिन के समय शयन संबंधी जो भी अतिचार सेवन किया गया है उससे मैं पीछे लौटता हूं। मेरा वह दुष्कृत निष्फल हो। Exposition: I want to self-criticise in order to remove faults relating to bed rest. In case I might have been sleeping for a period more than the one prescribed or sleeping again and again for a very long period or I changed side without proper care or changed side repeatedly, or twisted or spread my body, hands and feet without IVth Chp. : Pratikraman आवश्यक सूत्र // 81 //
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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