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I accept the patronage of four namely (1) of Arihantas ( 2 ) of Siddhas (3) of Sadhus (4) of Dharma as propagated by omniscient.
विवेचन : श्रेष्ठतम की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठतम की शरण अनिवार्य है। इस जगत में जो भी श्रेष्ठतम एवं मंगल रूप हैं, वे चार ही हैं- अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं सर्वज्ञोक्त धर्म । इन चारों की सन्निधि से व्यक्ति आत्मलाभ प्राप्त करता है। आत्मलाभ ही परम और श्रेष्ठ लाभ है। भौतिक (धन, यश, पुत्र आदि) लाभ क्षणिक हैं। उन्हें नष्ट होना ही होता है। धर्मलाभ अनश्वर है। उसके आराधन से जीव शाश्वत पद मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । इसीलिए धर्म एवं धर्म के आधारभूत अरिहंत, सिद्ध और साधु को मंगल कहा गया है। जो गले नहीं, नष्ट न हो, सदैव बना रहे, उसे ही मंगल कहा जाता है।
Explanation: In order to gain excellence it is essential to seek the patronage of the excellent in this world The excellent and ominous one are only four namely Arihants, Siddhas, Sadhus and Dharma defined by ominscients With the patronage of these four, the pupil gains self-realisation and self-realisation is the unique benefit of highest order. Material benefits such as money, worldly honour, son and the like are transitory. They ultimately wither away The gain in the form of dharma is permanent. By following dharma, the pupil ulitimately gets the highest state namely salvation. So, Dharma and Arihantas, Sidhas and Sadhus who are propagators of dharma are termed as ominous, Mangal is that which never perishes, never dissolves and always remains stable. So, it is called ominous.
सामूहिक आलोचना सूत्र
इच्छामि पडिक्कमिडं, जो मे देवसि अइयारो कओ, काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाउ, दुचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छियव्वो, असमणपावग्गो, णाणे तह दंसणे, चरित्ते सुएसामाइए, तिन्हं गुत्तीणं, चउन्हं कसायाणं, पंचन्हं महव्वयाणं, छण्हं जीवनिकायाणं, सत्तण्हं पिंडेसणाणं, अट्ठण्हं पवयण माऊणं, नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं, दसविहे समण धम्मे, समणाणं, जोगाणं, जंखंडियं, जं विराहियं, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
ईर्यापथ सूत्र
इच्छामि पडिक्कमिउं - इरिया वहियाए, विराहणाए, गमणागमणे, पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा - उत्तिंग, पणग- दग, मट्टी- मक्कडा संताणा
चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण
Avashyak Sutra
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