________________
निवेदन पर गुरु ‘अनुजानामि' अर्थात् आज्ञा देता हूं, इस प्रकार कह कर आज्ञा प्रदान करें। गुरु की आज्ञा प्राप्त होने पर शिष्य अग्रिम पद बोले - ) ।
मैं सावद्य व्यापारों को त्याग कर आपके चरण-कमलों का अपने हाथों और मस्तक से स्पर्श करता हूं। भगवन्! आप क्षमा करने योग्य हैं। मेरे स्पर्श से आपको कोई कष्ट पहुंचा हो तो मुझे क्षमा करें। यूं तो आप सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हैं, फिर भी मैं जानना चाहता हूं कि आपका आज का दिवस सुखपूर्वक व्यतीत हुआ है न? आपकी संयम - यात्रा निराबाध है न? आपका शरीर मानसिक एवं ऐन्द्रिक बाधाओं से तो रहित है न?
अहो क्षमाशील श्रमण! मैं अपने दिवस संबंधी अपराधों (भूलों) के लिए क्षमा मांगता हूं। दिन भर में आवश्यक क्रियाएं करते हुए मुझसे जो भूलें हुई हैं उनसे मैं निवृत्त होता हूं। तेंतीस आशातनाओं में से आप क्षमाश्रमण की मैंने किसी प्रकार की आशातना की हो तो मुझे क्षमा करें। भगवन्! किसी भी मिथ्याभाव से आशातना हुई हो, दुष्ट मन से, दुर्वचन से, शारीरिक दुश्चेष्टाओं से, क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, किसी भी काल में, किसी भी मिथ्याभावना से, क्षमा आदि धर्मों का उल्लंघन करने वाली किसी भी प्रकार की आशातना हुई हो, तो उससे लगने वाले दिवस संबंधी अतिचारों से मैं निवृत्त होता हूं। हे क्षमाश्रमण ! मुझ से जो भी भूलें हुई हैं उनके लिए मैं क्षमायाचना करता हूं। संभावित भूलों की शुद्धि के लिए प्रतिक्रमण करता हूं, निन्दा करता हूं, गर्हा करता हूं और पाप रूप आत्मा का परित्याग करता हूं।
Exposition: Reverend Sir! I withdrawing my physical body from sinful activities according to my inner strength, want to pay my homage to you. So kindly allow me to enter the area upto three and a half cubits from the place where you are seated (the guru then grants permission by saying anujanami). After obtaining the permission, the pupil should say the following.
Discarding all activities involving violence. I touch your feet with my hands and forehead. Sir, you can grant pardon. You pardon me in case my touch has in any way caused any trouble to you. You are free from all obstructions. Still I wish to know whether you have passed the day peacefully and you have gone ahead on your path of self-restraint without any hurdles. I hope your physical body is free from mental and sensual disturbance.
O blessed monk! I seek pardon for the sins committed during the day. I withdraw myself from the faults committed while performing daily duties. In case out of 33 states of disrespect, I have committed any one, kindly forgive me. I might have तृतीय अध्ययन : वन्दन
Avashyak Sutra
// 70 //
kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkks