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caused disrespect to you in a state of wrong contemplation in a fit of evil mind, in uttering a bad word or in my physical postures. I might have done anything in a state of anger, ego, deceit and greed at any time in a wrong state of reflection. I might have transgressed the code of monk relating to various tenets including pardon. I discard all such faults done during the day. I seek pardon for all such faults. I withdraw myself in order to rectify the likely faults. I condemn such activities, declare them in public and discard them.
वन्दन-विधि ___मत्थएण वंदामि' यह पद सामान्य वन्दन का सूचक है जिसका उच्चारण शिष्य 'गुरु'
के प्रति किए जाने वाले प्रत्येक व्यवहार में करता है। ___“तिक्खुत्तो” के पाठ से विधि सहित किया जाने वाला मध्यम वन्दन है। विहार से आते हुए, विहार के लिए जाते हुए, गुरु महाराज के बाहर से आगमन या गमन, एवं शास्त्र आदि की वाचना लेते हुए एवं वाचना संपन्न होने पर शिष्य “तिक्खुत्तो" के पाठ से गुरुदेव को वन्दन करता है।
"इच्छामि खमासमणो" के पाठ से किया जाने वाला उत्कृष्ट वन्दन है। पाठ के भावार्थ से. इस वन्दन का महात्म्य सरलता से समझा जा सकता है। शिष्य की उत्कृष्ट विनम्रता इस पाठ में साकार हुई है। यह वन्दन दोनों संध्याओं में आवश्यक के तृतीय चरण के रूप में प्रतिदिन किया जाता है। .
बारह आवर्तन पूर्वक यह वन्दन-विधि सम्पन्न होती है।
आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने बारह आवर्तन का स्वरूप और क्रम इस प्रकार स्पष्ट किया है• प्रथम “अहो कायं काय" इस सूत्र को पठन करता हुआ साधक तीन आवर्तन करे। अर्थात्-दोनों हाथों को फैलाकर दशों अंगुलियां गुरु के चरणों पर लगाता हुआ मुख से "अ" अक्षर उच्चारण करे। फिर दोनों हाथ मस्तक को स्पर्श करता हुआ “हो” अक्षर कहे, सो इस प्रकार से प्रथम आवर्तन होता है। ___इसी प्रकार पूर्वोक्त विधि से ही “का” और “यं" अक्षरों के उच्चारण से द्वितीय आवर्तन हो जाता है। “का” “य" यह तृतीय आवर्तन है।4
इसी प्रकार “जत्ता" "भे” “जवणि" “ज्जं च भे” इन सूत्रों के भी तीन-तीन ही आवर्तन होते हैं, जैसे कि
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आवश्यक सूत्र
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