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________________ %%%%%%%%%%%%%%%% %% %%%%%%%%%%% % %%%% ५५३-दुहविवागेसु णं पाणाइवाय-अलियवयण-चोरिक्करण-परदारमेहुण-ससंगयाए 4 महतिव्वकसाय-इंदियप्पमाय-पावप्पओय-असुहज्झवसाणसंचियाणं कम्माणं पावगाणं पाव | अणुभागफलविवागा णिरयगति-तिरिक्खजोणि-बहुविहवसण-सय-परंपराबद्धाणं मणुयत्ते वि || आगयाणं जहा पावकम्मसेसेण पावगा होंति फलविवागा वह-वसण-विणास-नासा | कन्नुटुंगुट्ठकर-चरण-नहच्छेयण जिब्भ-च्छेअण-अंजणकडग्गिदाह-गयचलण-मलण-फलाणF उल्लंवण-सूललया-लउड-लट्ठि-भंजण-तउसीसगततत्तेल्ल-कलकल-अहिसिंचण-कुंभिपाग| कंपण-थिरबंधण-वेह-वज्झ-कत्तण-पतिभय-कर-करपल्लीवणादि-दारुणाणि दुक्खाणि अणोवमाणि बहुविविहपरंपराणुबद्धा ण मुच्चंति पावकम्मवल्लीए। अवेयइत्ता हु णत्थि मोक्खो | तवेण धिइधणियबद्धकच्छेण सोहेणं तस्स वावि हुज्जा। दु:खविपाक के प्राणातिपात, असत्य वचन, स्तेय, पर-दार-मैथुन, ससंगता, तीव्र कषाय, इन्द्रिय* विषय सेवन. प्रमाद. पाप-प्रयोग और अशभ अध्ययवसायों से संचित पापकर्मों के उन पापरूप अनभाग फल-विपाकों का वर्णन किया गया है जिन्हें नरकगति, तथा तिर्यग् योनि में अनेक प्रकार से शताधिक ॐ संकटों का सामना करना पड़ता है, यानि भोगना पड़ता है। वहाँ से निकलकर मनुष्य भव में आने पर 5 भी जीवों को पाप-कर्मों के शेष रहने से अनेक पापरूप अशुभ फल विपाक भोगने पड़ते हैं। यथा - 2 १. वध यानि दण्ड आदि से ताड़न, २. वृषण-विनाश अर्थात् नपुंसकीकरण, ३. नासा-कर्त्तन, ४. कर्णF कर्त्तन, ५. ओष्ठ-छेदन, ६. अंगुष्ठछेदन, ७. हस्तकर्तन, ८. चरण-छेदन, ९. नखछेदन, १०. जिह्वा* छेदन, ११. अंजन-दाह, १२. कटाग्निदाह, १३. हाथी के पैरों तले शरीर को कुचलवाना, १४. फरसे आदि से शरीर को फाड़ना, १५. रस्सियों से बाँध कर वृक्षों पर लटकाना, त्रिशूल-लता, लकुट और * लकड़ी से शरीर को भग्न करना, १६. तप्त कड़कड़ाते रांगा, सीसा व तेल से शरीर का अभिसिंचन करना, १७. कुम्भी यानि लोह-भट्टी में पकाना, १८. शीतकाल में शरीर पर कंपकंपी पैदा करने वाला अति शीतल जल डालना, १९. काष्ठ आदि में पैर फँसाकर दृढ़ता से बाँधना, २०. भाले आदि शस्त्रों से - छेदन-भेदन करना, २१. वर्द्धकर्त्तन यानि शरीर की चमड़ी (खाल) उधेड़ना, २२. अति भय-कारक |* El कर प्रदीपन यानि वस्त्र लपेटकर और शरीर पर तेल डालकर दोनों हाथों में अग्नि लगाना आदि अति दारूण दःख भोगना। अनेक भव-परम्परा में बँधे हए पापी जीव पापकर्म रूपी वल्ली के दःखरूप फलों : | को भोगे बिना नहीं छूटते हैं। क्योंकि कर्मों के फलों को भोगे बिना नही छूटते हैं। क्योंकि कर्मों के फलों को भोगे बिना उन से मुक्ति नहीं मिलती। हाँ, चित्त-समाधि रूप धैर्य के साथ दृढ़ संकल्पित E होकर जो तप करता है उसके पापकर्मों का भी शोधन हो जाता है। The killing of beings, telling lies, stealing, sexual intercourse with other's wife, Sasangata, very acute passions, enjoy the province of severe inertia, sinful activities and demeritoreous Karmas accumulation through inauspicious 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐明明明明明f f$ 手F听听听听听听听听听听听听听听听听听听Ff华 समवायांग सूत्र 281 Ganipittak 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步%%%%%%
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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