SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ had burnt, burn and will burn. Seventy two thousand excellent cities of * Supreme lords (Chakravarti) have been narrated therein. ३५६-वावत्तरिं कलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-लेहं १, गणियं २, रूवं ३, नट्टं ४, . || गीयं ५, वाइयं ६, सरगयं ७, पुक्खरगयं ८, समतालं ९, जूयं १०, जणवायं ११, पोरेकच्चं १२, अट्ठावयं १३, दगमट्टियं १४, अन्नविही १५, पाणविही १६, वत्थविही १७, सयणविही १८, अजं १९, पहेलियं २०, मागहियं २१, गाहं २२, सिलोगं २३, गंधजुत्तिं २४, मधुसित्थं || २५, आभरणविही २६, तरुणीपडिकम्म २७, इत्थीलक्खणं २८, पुरिसलक्खणं २९, हयलक्खणं ३०, गयलक्खणं ३१, गोणलक्खणं ३२, कुक्कुडलक्खणं ३३, मिंढयलक्खणं ३४, चक्कलक्खणं ३५, छत्तलक्खणं ३६, दंडलक्खणं ३७, असिलक्खणं ३८, मणिलक्खणं ३९, कागणिलक्खणं ४०, चम्मलक्खणं ४१, चंदचरियं ४२, सूरचरियं ४३, राहुचरियं ४४, गहचरियं ४५, सोभागकरं ४६, दोभागकरं ४७, विज्जागयं ४८, मंतगयं ४९, रहस्सगयं ५०, सभासं ५१, चारं ५२, पडिचारं ५३, बूहं ५४, पडिबूहं ५५, खंधावारमाणं ५६, नगरमाणं ५७, वत्थुमाणं ५८, खंधावारनिवेसं ५९, वत्थुनिवेसं ६०, नगरनिवेसं ६१, ईसत्थं ६२, छरुप्पवायं ६३, आससिक्खं ६४, हत्थिसिक्खं ६५, धणुव्वेयं ६६, हिरण्णपागं सुवण्णपागं मणिपागं धातुपागं ६७, बाहुजुद्धं दंडजुद्धं मुट्ठिजुद्धं अट्ठिजुद्धं जुद्धं निजुद्धं जुद्धाइजुद्धं ६८, सुत्तखेडं नालियाखेडं वट्टखेडं धम्मखेडं चम्मखेडं ६९, पत्तछेज्जं कडगच्छेनं ७०, सजीवं निजीवं ७१, सउणिरुयं ७२। ____ बहत्तर कलाएँ कही गई हैं, यथा – १. लेख कला (ब्राह्मी आदि अट्ठारह प्रकार की लिपियों के | लिखने का विज्ञान), २. गणित कला, ३. रूपकला, ४. नाट्य कला, ५. गीत कला, ६. वाद्य कला, ७. स्वरगत कला, ८. पुष्करगत कला, ९. समताल कला, १०. द्यूत कला, ११. जनवाद कला, १२. नगर-रक्षा कला, १३. अष्टापद कला (शतरंज, चौसर आदि खेलने की कला), १४. दकमृत्तिका कला, १५. अन्नविधि कला, १६. पानविधि कला (अनेक प्रकार के पेय पदार्थ बनाने की कला), * १७. वस्त्रविधि कला, १८. शयन विधि अथवा सदन विधि (गृह-निर्माण) कला, १९. आर्याविधि कला, २०. प्रहेलिका कला, २१. मागधिका (स्तुति-पाठ करने वाले चारण-भाटों की कला), २२. गाथा - कला, २३. श्लोक कला, २४. गन्धयुति कला, २५. मधुसिक्थ कला (स्त्रियों के पैरों में लगाया जाने | वाला माहुर बनाने की कला), २६. आभरण विधि कला, २७. तरुणी प्रतिकर्म कला, २८. स्त्रीलक्षण कला, २९. पुरुष लक्षण कला, ३०. हयलक्षण कला, ३१. गजलक्षण कला, ३२. गोण लक्षण कला / (बैलों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना), ३३. कुक्कुट लक्षण कला, ३४. मेंढ लक्षण कला, ३५. चक्रलक्षण कला, ३६. छत्र लक्षण कला, ३७. दंडलक्षण कला, ३८. असिलक्षण कला, ३९. मणि लक्षण कला, ४०. काकणी लक्षण कला, ४१. चर्मलक्षण कला, ४२. चन्द्रचर्या कला, FFFFFFFFF 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 समवायांग सूत्र 203_ 72th Samvaya
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy