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बहत्तरवां समवाय
The Seventy Second Samvaya
३५३ - वावत्तरं सुवन्नकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।
लवणस्स समुद्दस्स वावत्तरिं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति । सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख आवास यानि भवन कहे गए हैं। लवण समुद्र की बाहरी वेला को बहत्तर हजार नाग धारण करते हैं।
Seventy two residences or Bhawans have been said of Suparn Kumar Devas.
३५४–समणे भगवं महावीरे वावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जावय सव्वदुक्खप्पहीणे। थेरे णं अयलभाया वावत्तरिं वासाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
श्रमण भगवान महावीर ने बहत्तर वर्ष की सर्व आयु भोगी । तदुपरान्त वे सिद्ध - बुद्ध हो गए, कर्मों से मुक्त होकर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए, तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। स्थविर अंचल भ्राता भी बहत्तर वर्ष की आयु पूर्ण कर तथा सिद्ध-बुद्ध हुए, यावत् सर्व दुःखों से रहित हो हुए ।
Shraman Bhagwan Mahavir survived a total life span of Seventy two years. After that he attained salvation. After getting liberation from his Karmas he got Parinirvana i.e. the realm of Sidhgati. Eventually he became devoid of all the miseries and sufferings. The senior ( sthavir) ascetic Achalbhrata, too, enjoyed a life of seventy two years. After that he attained salvation. He became devoid of all miseries and suffeings.
३५५ - अब्भितरपुक्खरद्धे णं वावत्तरिं चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा, पभासिस्संति वा । [ एवं ] वावत्तरिं सूरिया तविंसु वा तवंतिं वा, तविस्संति वा । एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स वावत्तरिपुरवरसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।
आभ्यन्तर पुष्करार्ध द्वीप में चन्द्र और सूर्य का प्रकाशित होना तथा तपना कहा गया है। इस द्वीप में बहत्तर चन्द्र प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और आगे प्रकाश करेंगे। इसी प्रकार बहत्तर सूर्य तपते थे, तपते हैं और आगे तपेंगे। प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के बहत्तर हजार उत्तम पुर (नगर) कहे गए हैं।
In the inner half of the continent of Pushkrardh it been said that the sun and moon burn and illuminates. Seventy two moons have illuminated, illuminate and will illuminate in this half continent. In the same way seventy two suns
बहत्तरवां समवाय
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Samvayang Sutra
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