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इकतालीसवां समवाय
The Forty One Samvaya २४४-नमिस्स णं अरहओ एकचत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ होत्था। नमि अर्हत् के संघ में इकतालीस हजार आर्यिकाएँ कही गई हैं।
The number of nuns (Aryikas) in the religious organization of Arihant Nami have been said as forty one thousand.
२४५-चउसु पुढवीसु एक्कचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, तं जहा|| रयणप्पभाए पंकप्पभाए तमाए तमतमाए।
चार पृथ्वियों में कुल इकतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। यथा – १. रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस 9 लाख, २. पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख, ३. तमःप्रभा पृथ्वी में पाँच कम एक लाख, ४. महातमःप्रभा | पृथ्वी में पाँच नारक वास। (३०+१०+५ कम १ लाख +५=४१ लाख)।
In four lands (hells) namely Ratanprabha (gem hue), Pankprabha (mud hue), Tamhprabha land (dark hue), Mahatamh hell (dense dark hue land) forty one infernal residences have been said.
२४६- महालियाए णं विमाणपविभत्तीए पढमे वग्गे एक्कचत्तालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता। महालिका (महत्ती) विमान प्रविभक्ति के प्रथम वर्ग में इकतालीस उद्देशन काल कहे गए हैं।
In the first volume of Mahalika Viman Pravibhakti contains forty one Udeshna (chapters).
॥ इकतालीसवां समवाय समाप्त ॥ (The End of Forty One Samvaya)
बयालीसवां समवाय
The Forty Two Samvaya २४७-समणे भगवं महावीरे वायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
श्रमण भगवान महावीर ने बयालीस वर्ष से कुछ अधिक वर्ष तक श्रमण पर्याय पाला, तत्पश्चात् वे सिद्ध-बुद्ध हो गए। यावत् सर्व दुःखों से रहित हो गए। इकतालीसवां समवाय
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Samvayang Sutra
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