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________________ 步步步为劣5%%%%%%%%% % % % %% % %% % %% %% २४. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स 'इति एवं' ति वत्ता न भवति, आसायणा सेहस्स। २५. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स 'नो तुमरती' ति वत्ता न भवति, आसायणा सेहस्स। २६. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता भवति, आसायणा सेहस्स। २७. सेहे रायणियस्स कहं कमाणस्स परिसं भेत्ता भवइ, आसायणा सेहस्स। २८. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्ठिताए अभिन्नाए अवुच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्चं पि तमेव कहं कहित्ता भवति, आसायणा सेहस्स। २९. सेहे रायणियस्स सेजा-संथारगं पाएणं संघट्टित्ता, हत्थेणं अणणुण्णवित्ता गच्छति, आसायणा सेहस्स। ३०. सेहे रायणियस्स सेजा-संथारए चिट्ठित्ता वा निसीइता वा तुयट्टित्ता वा भवइ, आसायणा सेहस्स। ३१. सेहे रायणियस्स उच्चासणे चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति, आसायणा सेहस्स। ३२. सेहे रायणियस्स समासणे चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति, आसायणा सेहस्स। ३३. सेहे रायणियस्स आलवमाणस्स तत्थगए चेव पडिसुणित्ता भवइ, आसायणा सेहस्स। सम्यग्दर्शनादि धर्म की विराधनारूप आशातनाएँ कही गई हैं जिनकी संख्या तेंतीस हैं। यथा - १. शैक्ष साधु (नवदीक्षित या अल्प दीक्षा-पर्याय वाला साधु) रात्निक (अधिक दीक्षा पर्याय वाले) साधु के अति निकट होकर गमन करे। यह शैक्षसाधु की प्रथम आशातना है। २. शैक्ष साधु की दूसरी आशातना है कि वह रात्निक साधु से आगे-आगे गमन करे। ३. शैक्ष साधु की तीसरी आशातना है कि वह रानिक साधु के संग-संग यानि बराबरी से गमन करे। ४. शैक्ष साधु की चौथी आशातना है कि वह रानिक साधु के आगे खड़ा हो। ५. शैक्ष साधु की पाँचवीं आशातना है कि वह रात्निक साधु के साथ बराबरी से खड़ा हो। ६. शैक्ष साधु की छठी आशातना है कि वह रात्निक साधु के अति निकट खड़ा हो। ७. शैक्ष साधु की सातवीं आशातना है कि वह रानिक साधु के आगे बैठे। . तेतीसवां समवाय . 148 Samvayang Sutra
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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